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प्रश्न – “किसानों की मदद के लिए, एपीएमसी मंडियों के बजाय, किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम सही दृष्टिकोण है।” टिप्पणी करें। साथ ही यह भी बताइए कि, यह (FPOs) छोटे तथा सीमान्त कृषकों के लिए किस प्रकार सहायक है ? – 10 June 2021
उत्तर –
किसानों की आय बढ़ाने, मंडियों तक पहुंच बनाने और फसल उपज का बेहतर मूल्य उपलब्धता के लिए सरकार ने एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठन बनाने की पहल की है | इन संगठनों संघटन की जिम्मेदारी प्रत्येक जिले में कृषि विभाग, बागवानी विभाग, पशुपालन विभाग और नाबार्ड बैंक को दी गई है |
किसान उत्पादक संगठन किसानों द्वारा नियंत्रित स्वैच्छिक संगठन हैं, जिनके सदस्य नीति निर्माण और निर्णय लेने में सक्रिय भागीदार होते हैं। यह (किसान उत्पादक कंपनी) कृषि उत्पादन गतिविधियों में लगे और कृषि से संबंधित व्यावसायिक गतिविधियों को क्रियान्वित करने वाले कृषकों का एक समूह है।
किसान उत्पादक संगठन के उद्देश्य:
इसे छोटे पैमाने के उत्पादकों विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों को समूहबद्ध करने के उद्देश्य से बनाया गया था ताकि किसानों के हितों की रक्षा की जा सके। यह किसानों को बीज, उर्वरक, मशीनों की आपूर्ति, मार्केट लिकेजेज के संदर्भ में परामर्श एवं तकनीकी सहायता देगा । साथ ही किसानों को प्रशिक्षण, नेटवर्किंग, वित्तीय एवं तकनीकी परामर्श भी उपलब्ध कराएगा। कृषकों को ऋण की उपलब्धता एवं बाजार तक पहुंच सुनिश्चित करने के संदर्भ में उन चुनौतियों के समाधान का प्रयास करना भी इसकी प्रमुख जिम्मेदारी है।
किसान उत्पादक संगठन के लाभ:
- औसत जोत आकार की चुनौती का समाधान: उल्लेखनीय है कि भारत में औसत जोत का आकार 1970-71 में 2.3 हेक्टेयर से घटकर 2015-16 में केवल 1.08 हेक्टेयर रह गया है। साथ ही, कृषि क्षेत्र में छोटे और सीमांत किसानों की हिस्सेदारी 1980-81 में 70% से बढ़कर 2015-16 में 86% हो गई है। एफपीओ किसानों को सामूहिक कृषि के लिए प्रोत्साहित करते हैं और छोटे आकार की जोत से उत्पन्न होने वाली उत्पादकता चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं। इसके अलावा कृषि नवाचार और उत्पादकता में वृद्धि से अतिरिक्त रोजगार सृजन में भी मदद मिलेगी।
- कृषि वित्त की उपलब्धता: कृषि हेतु वित्त के लिये किसानों को सामान्यत: महाजनों पर या बैंकों पर व्यक्तिगत रूप से निर्भर रहना पड़ता है, परिणाम स्वरुप ऋण अदायगी का दवाब भी व्यक्तिगत होता है। कई बार इस दबाव के कारण किसान आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं।
- कृषि वित्त की उपलब्धता: सामान्यतः कृषि हेतु वित्त के लिये किसानों को सामान्यत: महाजनों पर या बैंकों पर व्यक्तिगत रूप से निर्भर रहना पड़ता है, परिणाम स्वरुप ऋण अदायगी का दवाब भी व्यक्तिगत होता है। कई बार इस दबाव के कारण किसान आत्महत्या जैसे कदम उठा लेते हैं। एफपीओ सदस्य किसानों को न्यूनतम लागत और गुणवत्तापूर्ण इनपुट प्रदान कर सकते हैं। यह सदस्यों को समय, लेनदेन लागत, संकट बिक्री, मूल्य में उतार-चढ़ाव, परिवहन, गुणवत्ता रखरखाव आदि के रूप में बचत करने में सक्षमता प्रदान करेगा।
- सामाजिक प्रभाव: एफपीओ के रूप में एक सामाजिक पूंजी विकसित होगी, क्योंकि एफपीओ लैंगिक भेदभाव को दूर करने में सक्षम हैं ,और संगठन की निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिला किसानों की भागीदारी में सुधार कर सकते हैं। यह सामाजिक संघर्ष को कम करने के साथ-साथ समुदाय में बेहतर भोजन और पोषण को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
- एक सशक्त संगठन होने के कारण, एफपीओ के सदस्य के रूप में किसानों को बेहतर सौदेबाजी की शक्ति मिलेगी, जिससे उन्हें प्रतिस्पर्धी कीमतों पर अपने फसल उत्पादों को खरीदने या बेचने का उचित लाभ मिल सकेगा। साथ ही किसानों को बिचौलियों के जाल से मुक्ति मिलेगी।
एफपीओ छोटे और सीमांत कृषकों को संगठित करने के लिए एक महत्वपूर्ण संस्थागत तंत्र प्रतीत होता है। एकत्रीकरण, छोटे जोत आकार की बाधा को दूर कर सकता है। वे सौदेबाजी में बड़े कॉर्पोरेट उद्यमों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते इसलिए वास्तविक उम्मीद किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) में है, जो सदस्यों को एक समूह के रूप में बातचीत करने की अनुमति देते हैं, और छोटे किसानों को इनपुट और आउटपुट दोनों बाजारों में मदद कर सकते हैं। एफपीओ को विशेष रूप से छोटे धारकों को लाभ पहुंचाने के लिए पूरे देश में विस्तार करने के अलावा नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
अंत में, किसी को यह याद रखना चाहिए कि किसान हमेशा अपनी उपज के लिए अधिक कीमत चाहते हैं, लेकिन उच्च खाद्य कीमतें, गरीब उपभोक्ताओं को भी परेशान कर सकती हैं। नीति निर्माण की कला उचित वित्तीय संसाधनों के भीतर उत्पादकों और उपभोक्ताओं के हितों को संतुलित करना है