प्रवर्तन निदेशालय (ED) के प्रमुख का कार्यकाल विस्तार को अवैध घोषित

प्रवर्तन निदेशालय (ED) के प्रमुख का कार्यकाल विस्तार को अवैध घोषित

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) प्रमुख के कार्यकाल में किए गए विस्तार को अवैध घोषित कर दिया है

सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार ED के कार्यकाल का यह विस्तार कॉमन कॉज बनाम भारत संघ मामले में उसके 2021 के फैसले का उल्लंघन है।

इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि मौजूदा ED प्रमुख के कार्यकाल का विस्तार नहीं किया जाना चाहिए ।

इसमें कहा गया था कि उच्च पदस्थ अधिकारियों को केवल सार्वजनिक हित में तथा लिखित कारणों के आधार पर ही सेवा विस्तार दिया जा सकता है।

न्यायालय ने अपने फैसले में केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) अधिनियम, 2003 और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 में किए गए संशोधनों को भी बरकरार रखा। इन संशोधनों के अनुसार केंद्र सरकार ED और CBI के प्रमुखों का कार्यकाल 5 साल तक बढ़ा सकती है।

यह संशोधन तब लाया गया, जब सर्वोच्च न्यायालय ने 2021 के अपने फैसले में कहा कि कार्यकाल का विस्तार केवल ‘दुर्लभ और असाधारण मामलों में सीमित समय के लिए ही दिया जा सकता है।

प्रवर्तन निदेशालय

प्रवर्तन निदेशालय एक बहु-विषयक संगठन है । यह आर्थिक अपराधों और विदेशी मुद्रा से जुड़े कानूनों के उल्लंघन की जांच के लिए अधिकृत है।

इसकी स्थापना 1956 में वित्त मंत्रालय के तहत की गई थी । यह धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 को लागू करता है ।

प्रवर्तन निदेशक की नियुक्ति CVC अधिनियम, 2003 के प्रावधानों के अनुसार की जाती है ।

प्रवर्तन निदेशक की नियुक्ति एक समिति की सिफारिश पर केंद्र सरकार द्वारा की जाती है । इस समिति का अध्यक्ष केंद्रीय सतर्कता आयुक्त होता है।

प्रवर्तन निदेशालय से संबंधित मुद्दे:

राजनीतिक कार्यपालिका का हस्तक्षेप,

इसके लिए कोई समर्पित कानून नहीं है । इसे CVC अधिनियम, 2003 द्वारा शासित किया जाता है ।

प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक की नियुक्ति के लिए गठित समिति में निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैं –

  • केंद्रीय सतर्कता आयुक्त -अध्यक्ष
  • केंद्रीय वित्त मंत्रालय (राजस्व विभाग) का प्रभारी सचिव -सदस्य
  • केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय का प्रभारी सचिव-सदस्य
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय का प्रभारी -सचिव
  • सतर्कता आयुक्त सदस्य-सदस्य

स्रोत – द हिन्दू

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