पॉक्सो पर सुप्रीम कोर्ट ने बदला हाईकोर्ट का फैसला

हाल ही में उच्चतम न्यायालय (SC) ने स्पष्ट किया है कि पॉक्सो अधिनियम (POCSO) के तहत मामले में लैंगिक हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक ‘लैंगिक प्रयोजन’ है, त्वचा से त्वचा का संपर्क होना ही जरूरी नहीं है ।

SC ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व के निर्णय को रद्द कर दिया है। इसके अंतर्गत उच्च न्यायालय ने लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act के तहत एक व्यक्ति को आरोपों से मुक्त कर दिया था। निर्णय में कहा गया था कि बिना प्रवेश (penetration) के लैंगिक प्रयोजन के साथ त्वचा से त्वचा का कोई सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ था।

SC का निर्णय

  • यह निर्दिष्ट करता है कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 में ‘स्पर्श’ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह के स्पर्श को शामिल करता है अन्यथा अधिनियम अस्वीकार्य व्यवहार की एक संपूर्ण श्रृंखला को वैध मान लेगा। इससे एक बच्चे की गरिमा और स्वायत्तता अत्यंत कमजोर हो जाएगी।
  • शरीर के लैंगिक अंग को स्पर्श करने का कृत्य या शारीरिक संपर्क से संबंधित कोई अन्य कार्य, यदि ‘लैंगिक प्रयोजन’ से किया जाता है, तो पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 के अर्थ में यह ‘लैंगिक हमला’ माना जाएगा।

पॉक्सो अधिनियम, 2012 के बारे में

  • इसे बच्चों को लैंगिक हमले, लैंगिक उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी आदि जैसे अपराधों से बचाने के लिए अधिनियमित किया गया था।
  • यह ऐसे अपराधों से निपटने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • यह निर्धारित करता है कि बाल लैंगिक शोषण के एक मामले का अपराध की शिकायत दर्ज कराये जाने की तिथि से एक वर्ष के भीतर निपटान किया जाना चाहिए।
  • अधिनियम के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु का कोई भी व्यक्ति बालक माना जाएगा।
  • ध्यातव्य है कि अगस्त 2019 में बच्चों के खिलाफ लैंगिक अपराधों के लिए मृत्युदंड सहित अधिक कठोर सजा का प्रावधान करने हेतु इसमें संशोधन किया गया था।

पॉक्सो नियम, 2020

  • कर्मचारियों का अनिवार्य पुलिस सत्यापन।
  • राज्य सरकारें बाल संरक्षण नीति बनाएगी।
  • पुलिसकर्मियों और फोरेंसिक विशेषज्ञों की क्षमता का निर्माण।
  • हितधारकों का आवधिक प्रशिक्षण।

स्रोत – द हिन्दू

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