पॉक्सो एक्ट 2012
हाल ही में लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण (POCSO) पॉक्सो एक्ट/अधिनियम, 2012 के क्रियान्वयन के 10 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं।
- विदित हो कि बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम’ 2012 अर्थात ‘पॉक्सो अधिनियम’ (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012 – POCSO) को 14 नवंबर (बाल दिवस) के अवसर पर लागू किया गया था।
- इसे लैंगिक हमला (sexual assault), लैंगिक उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी जैसे यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है।
- वर्ष 2012 में पॉक्सो के लागू होने के बाद भी बाल उत्पीड़न संबंधी अपराधों के मामलों में वृद्धि को देखते हुए वर्ष 2019 में पॉक्सो अधिनियम में कई अन्य संशोधनों के साथ ऐसे अपराधों में मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया था।
अधिनियम की मुख्य विशेषताएं
- रिपोटिंग, साक्ष्यों को दर्ज करने और जांच करने के लिए बालकों के अनुकूल प्रणाली के प्रावधान किए गए हैं। अपराधों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का भी प्रावधान किया गया है।
- यह लैंगिक दृष्टि से तटस्थ कानून है। इसका अर्थ है कि लड़कों और लड़कियों के यौन उत्पीड़न के मामले में लैंगिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। यह कानून अपराध की गंभीरता के आधार पर कठोर दंड निर्धारित करता है।
- 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बालक के रूप में परिभाषित किया गया है।
- त्वरित सुनवाई के लिए विशेष फास्ट ट्रैक न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और राज्यों में इसके समकक्ष संस्थान इस कानून के कार्यान्वयन की निगरानी करते हैं।
POCSO अधिनियम, 2012 से संबंधित चुनौतियां
- लंबित मामलों की संख्या काफी अधिक (लगभग 85%) है।
- कोविङ-19 ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई है। दोषसिद्धि दर भी बहुत कम (केवल लगभग 14%) है।
- अनन्य विशेष न्यायालय और विशेष लोक अभियोजक उपलब्ध नहीं हैं।
- जांच के क्रम में प्रक्रियागत खामियां सामने आती हैं। यही नहीं, पीड़ितों की सुरक्षा और उन्हें समर्थन देने जैसी व्यवस्थाओं का भी अभाव है।
- कई उच्च न्यायालय अधिनियम के तहत सहमति की आयु अधिक होने पर सवाल उठाते रहे हैं।
स्रोत – द हिन्दू