पैंगोलिन (वज्रशल्क)
हाल ही में वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया की एक नई रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2018-2022 तक भारत में लगभग 1,000 से अधिक पैंगोलिन(वज्रशल्क)का अवैध शिकार एवं तस्करी की गई है ।
भारत में शिकार और जब्ती की सर्वाधिक घटनाएँ ओडिशा में हुई तथा यहीं से सर्वाधिक पैंगोलिन भी प्राप्त की गई थी।
पैंगोलिन के बारे में
- पैंगोलिन विश्व स्तर पर सबसे अधिक तस्करी किए जाने वाले जंगली स्तनधारियों में से एक हैं।
- पैंगोलिन एकमात्र ऐसा स्तनधारी है जो पूरी तरह से शल्कों से ढका होता है। यह शल्कों का इस्तेमाल स्वयं को बचाने के लिए करता है।
- यह चींटियों, दीमकों आदि को खाता है। इसलिए, इसे शल्कीय चींटीखोर कहा जाता है। यह एकान्तप्रिय तथा मुख्य रूप से निशाचर जीव है।
- पैंगोलिन एक ‘इकोसिस्टम इंजीनियर है, जो मृदा के सर्कुलेशन (उलटने – पलटने में मदद करता है)
- इसके शल्क पारंपरिक दवाओं में इस्तेमाल होते हैं। साथ ही, इसके मांस का भी उपभोग किया जाता है ।
- पैंगोलिन की 8 प्रजातियों में से दो भारत में पाई जाती हैं । भारतीय पैंगोलिन (एंडेंजर्ड), चीनी पैंगोलिन (क्रिटिकल एंडेंजर्ड) ।
प्राकृतिक आवास:
- यह प्राथमिक और द्वितीयक उष्णकटिबंधीय जंगलों, चूना पत्थर और बाँस के जंगलों, घास के मैदानों और कृषि क्षेत्रों सहित आवासों की एक विस्तृत शृंखला के लिये अनुकूलनीय है।
- भारतीय पैंगोलिन भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है जबकि चीनी पैंगोलिन की उपस्थिति बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में देखी गई है।
संरक्षण की स्थिति:
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा प्रकाशित जानवरों की रेड लिस्ट में भारतीय पैंगोलिन को लुप्तप्राय (Endangered -EN) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।
- जबकि चीनी पैंगोलिन को “गंभीर रूप से लुप्तप्राय” के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- भारत में भारतीय और चीनी दोनों पैंगोलिन वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 के तहत संरक्षित हैं, जो इसके शिकार, व्यापार या किसी अन्य प्रकार के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
- पैंगोलिन की सभी प्रजातियाँ वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के परिशिष्ट I में सूचीबद्ध हैं।
स्रोत – द हिन्दू