हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार सरकारी कार्यक्रम के तहत 13 लाख से अधिक पेयजल नमूनों की जांच में से 1.11 लाख नमूने दूषित पाये गये हैं ।
इस कार्यक्रम हेतु नमूने सरकार के पेयजल परीक्षण और निगरानी कार्यक्रम से लिए गए है।
नमूनों के संदूषण हेतु निम्नलिखित उत्तरदायी हैं: पेयजल नमूनों की जांच में से 1.11 लाख नमूने दूषित
- प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रसायन और खनिज जैसे आर्सेनिक, फ्लोराइड, लोहा और यूरेनियम।
- स्थानीय भूमि उपयोग की पद्धतियों जैसे उर्वरक, कीटनाशक, पशुधन और केंद्रित आहार क्रियाकलाप।
- पेयजल स्रोतों के समीप भारी धातु या साइनाइड जैसी विनिर्माण प्रक्रियाएँ।
ध्यातव्य है कि जल में दूषित पदार्थों का असुरक्षित स्तर होने से स्वास्थ्य नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है और यह कैंसर जैसी दीर्घकालिक बीमारियों का कारण भी बन सकता है।
यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में लगभग 70% सतही जल उपभोग के लिए उपयुक्त नहीं है।
इन नमूनों की जांच के दौरान 20 राज्यों के 230 जिलों में फ्लोराइड का उच्च स्तर पाया गया था। इनमें राजस्थान, गुजरात और आंध्र प्रदेश सर्वाधिक प्रभावित राज्य हैं।
पेयजल की गुणवत्ता में सुधार के लिए उठाए गए कदम–
- जल शक्ति मंत्रालय द्वारा पेयजल गुणवत्ता के परीक्षण, जांच और निगरानी के लिए रूपरेखा एवं दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं।
- जल गुणवत्ता सूचना प्रबंधन प्रणाली (Water quality information management system: WOMIS) नामक एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया गया है। यह पोर्टल प्रयोगशालाओं पर विस्तृत सूचना प्रदान करता है।
- प्रत्येक गांव में महिलाओं को प्रशिक्षित करने के लिए फील्ड टेस्ट किट (FTK) का उपयोग करके जल की गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है।
- राष्ट्रीय फ्लोरोसिस निवारण और नियंत्रण कार्यक्रम आरंभ किया गया है।
- साथ ही, सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए जल जीवन मिशन (JUM) को संचालित किया जा रहा है।
स्रोत – द हिन्दू