लिथियम-आयन बैटरी के उत्पादन हेतु कच्चे माल के रूप में पेट कोक के आयात की अनुमति
हाल ही में विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) ने लिथियम-आयन बैटरी के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में पेट कोक के आयात की अनुमति दे दी है।
- लिथियम आयन बैटरी के उत्पादन में जरूरी ग्रेफाइट एनोड सामग्री के निर्माण के लिए नीडल पेट कोक (NPC) के आयात को मंजूरी दी गई है।
- NPC का किसी अन्य उद्देश्य में उपयोग नहीं किया जाएगा। इस NPC में सल्फर की मात्रा 8% से भी कम है।
- भारत विश्व में पेटकोक का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। भारत अपने वार्षिक पेटकोक उपभोग का आधे से अधिक आयात करता है। यह आयात मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका से किया जाता है ।
- वर्ष 2018 में, सरकार ने ईंधन के रूप में उपयोग के लिए पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन सीमेंट, चूने के भट्टे, कैल्शियम कार्बाइड और गैसीकरण उद्योगों के लिए इसके आयात में छूट दी थी ।
- पेट्रोलियम कोक (पेट कोक) कार्बन-युक्त ठोस सामग्री है। इसे अंतिम क्रैकिंग प्रक्रिया से प्राप्त किया जाता है।
क्रैकिंग प्रक्रिया ऊष्मा – आधारित केमिकल इंजीनियरिंग प्रक्रिया है । यह पेट्रोलियम की लंबी श्रृंखला वाले हाइड्रोकार्बन को छोटी श्रृंखलाओं में विभाजित करती है।
- पेट कोक की श्रेणियां: ग्रीन कोक (उच्च नमी और वाष्पशील पदार्थ युक्त) और कैलसाइंड कोक (ग्रीन कोक की तुलना में उच्च कार्बन सामग्री) ।
- पेट कोक के प्रकार: NPC, हनीकॉम्ब कोक, स्पंज कोक और शॉट कोक ।
पेट कोक के उपयोग:
- इसका सीमेंट, गैसीकरण, बॉयलर आदि में कच्चे माल/ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है,
- इसका कार्बन स्रोत (इलेक्ट्रोड, सिंथेटिक ग्रेफाइट, सिलिकॉन कार्बाइड, TiO2 पिगमेंट, कार्बन रेजर आदि) की तरह उपयोग किया जाता है।
कोयले की तुलना में पेट कोक के लाभ:
- इसका उच्चतर कैलोरी मान होता है। कोयले के 3500-4500 किलो कैलोरी/किलोग्राम की तुलना में पेट कोक का कैलोरी मान 7800 किलो कैलोरी/किलोग्राम होता है ।
- पेट कोक हाइड्रोफोबिक होता है, जबकि कोयला हाइड्रोफिलिक होता है। इसका अर्थ है कि पेट कोक वर्षा के मौसम में नमी नहीं पकड़ता है, इसके विपरीत कोयला नम हो जाता है।
- पेट कोक कम वाष्पशील पदार्थ है। ऐसे में इसके वाष्प बनकर नुकसान होने की संभावना कम हो जाती है। इसके दहन के बाद राख की कम मात्रा उत्पन्न होती है ।
पेट कोक के उपयोग से उत्पन्न होने वाली समस्याएं:
- इसमें 80% से अधिक कार्बन होता है। यह प्रति यूनिट ऊर्जा आधार पर कोयले की तुलना में 5 से 10% अधिक CO, का उत्सर्जन करता है ।
- इसके दहन से पारा, आर्सेनिक, क्रोमियम और निकेल जैसी भारी धातुओं के साथ-साथ सल्फर एवं हाइड्रोजन क्लोराइड सहित अन्य जहरीली गैसे भी वातावरण में पहुंचती हैं।
स्रोत – इकोनॉमिक्स टाइम्स