पूर्वोत्तर राज्यों में बेहतर कनेक्टिविटी
हाल ही में विदेश मंत्री के अनुसार पूर्वोत्तर राज्यों में बेहतर कनेक्टिविटी से भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत होंगे
विदेश मंत्री ने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों और पड़ोसी देशों के बीच अधिक से अधिक भूमि तथा समुद्री संपर्क से निम्नलिखित व्यापक प्रभाव होंगेः
इससे दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संघ (आसियान/ASEAN) एवं जापान के साथ भारत की साझेदारी और मजबूत होगी।
यह इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) के लिए प्रभावी सिद्ध होगा।
पूर्वोत्तर राज्यों का महत्व–
- भू–रणनीतिक अवस्थितिः पूर्वोत्तर भारत के राज्य बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार और नेपाल जैसे देशों के साथ सीमाओं को साझा करते हैं। यह स्थिति उन्हें अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए अनुकूल बनाती है।
- प्राकृतिक संसाधनः इस क्षेत्र में अपार प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं। देश के कुल जल संसाधनों में पूर्वोत्तर क्षेत्र 34% का योगदान करता है। भारत की लगभग 40% जलविद्युत क्षमता के स्रोत भी पूर्वोत्तर राज्य ही हैं।
- बाजारों तक पहुंचः रणनीतिक रूप से पूर्वी भारत के पारंपरिक घरेलू बाजार तक इनकी पहुंच है। यह दक्षिण पूर्व एशियाई बाजारों के लिए एक सुविधा युक्त प्रवेश बिंदु भी है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत की “पड़ोस पहले” (नेबरहुड फस्ट) और “एक्ट ईस्ट” नीति के केंद्र-बिंदु में है।
उपर्युक्त लाभों के बावजूद, पूर्वोत्तर क्षेत्र कई समस्याओं से ग्रस्त है, जिनमें प्रमुख हैं:
- पर्याप्त अवसंरचना सुविधाओं का अभाव,
- कनेक्टिविटी का अभाव,
- निजी निवेश की कमी,
- कम पूंजी निर्माण,
- भौगोलिक अलगाव आदि।
क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में सुधार के लिए की गई पहलें–
- इंडिया–म्यांमार–थाईलैंड (IMT) त्रिपक्षीय राजमार्गः यह भारत के मोरेह को थाईलैंड के माई सॉट से जोड़ेगा।
- कलादान मल्टीमॉडल परियोजनाः यह म्यांमार के रखाइन प्रान्त में स्थित सितवे को कोलकाता समुद्री बंदरगाह से जोड़ेगा।
- बांग्लादेश-भूटान-इंडिया नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौता।
स्रोत – द हिंदू