पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक

पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक

हाल ही में कोलकाता में 25वीं ‘पूर्वी क्षेत्रीय परिषद’ की बैठक का आयोजन किया गया है। इस बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री ने की है।

क्षेत्रीय परिषद के बारे में

  • क्षेत्रीय परिषदें संवैधानिक निकाय नहीं हैं। ये संसद के एक अधिनियम, यानी राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 द्वारा स्थापित की गई हैं ,इसलिए इनको वैधानिक निकाय का दर्जा प्राप्त है।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत देश को पाँच क्षेत्रीय परिषदों में बांटा गया है – उत्तरी, मध्य, पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी ।

इन क्षेत्रों का निर्माण करते समय कई कारकों को ध्यान में रखा गया है जिनमें शामिल हैं:

देश का प्राकृतिक विभाजन,नदी प्रणाली और संचार के साधन,सांस्कृतिक व भाषायी संबंध

आर्थिक विकास एवं सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था की आवश्यकता आदि ,

उपर्युक्त क्षेत्रीय परिषदों के अतरिक्त  संसद द्वारा वर्ष 1971 के उत्तर-पूर्वी परिषद अधिनियम के माध्यम से  एक उत्तर-पूर्वी परिषद बनाई गई थी ।

इसके सदस्यों में असम, मणिपुर, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल हैं।

क्षेत्रीय परिषदों का संगठनात्मक ढाँचा:

  • केंद्रीय गृह मंत्री सभी परिषदों का अध्यक्ष होता है।
  • प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद में शामिल किये गए राज्यों के मुख्यमंत्री, करवार रूप से एक समय में एक वर्ष की अवधि के लिये उस अंचल के आंचलिक परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
  • इसके सदस्यों में मुख्यमंत्री एवं प्रत्येक राज्य से राज्यपाल द्वारा नामित दो अन्य मंत्री और परिषद में शामिल किये गए संघ राज्य क्षेत्रों से दो सदस्य शामिल होते हैं ।
  • प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद के लिये नीति आयोग द्वारा नामित एक मुख्य सचिव और ज़ोन में शामिल प्रत्येक राज्य द्वारा नामित एक अन्य अधिकारी/विकास आयुक्त सलाहकार होते हैं।

उद्देश्य

  • क्षेत्रीय परिषदों का राष्ट्रीय एकीकरण को साकार करना। तीव्र राज्यक संचेतना, क्षेत्रवाद तथा विशेष प्रकार की प्रवृत्तियों के विकास को रोकना।
  • केंद्र एवं राज्यों को विचारों एवं अनुभवों का आदान-प्रदान करने तथा सहयोग करने के लिये सक्षम बनाना।
  • विकास परियोजनाओं के सफल एवं तीव्र निष्पादन के लिये राज्यों के बीच सहयोग के वातावरण की स्थापना करना।

परिषदों के कार्य:

  • आर्थिक और सामाजिक नियोजन के क्षेत्र में सामान्य हित का कोई भी मामला;
  • सीमा विवाद, भाषायी अल्पसंख्यकों या अंतर-राज्यीय परिवहन से संबंधित कोई भी मामला;
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित या उससे उत्पन्न कोई भी मामला।

स्रोत – पी.आई.बी

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