केंद्र सरकार पुंछी आयोग की रिपोर्ट पर राज्यों के विचार आमंत्रित करने के लिए तैयार
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पुंछी आयोग की रिपोर्ट पर 5 साल बाद फिर से राज्यों की राय जानने का निर्णय लिया है।
- इससे पहले वर्ष 2017 – 2018 में अंतर्राज्यीय परिषद (ISC) की स्थायी समिति ने इस रिपोर्ट की पहली बार समीक्षा की थी ।
- वर्ष 2007 में केंद्र – राज्य संबंधों पर एक आयोग का गठन किया गया था। देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन मोहन पुंछी इसके अध्यक्ष थे। इस आयोग ने 2010 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी ।
- पुंछी आयोग ने अपनी सात – खंडों की रिपोर्ट में 273 सिफारिशें की थी ।
पुंछी आयोग की प्रमुख सिफारिशें –
- समवर्ती सूची के विषयों पर विधेयक पेश करने से पहले केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय परिषद के माध्यम से राज्यों से परामर्श करना चाहिए ।
- संविधान के अनुच्छेद – 355 में संशोधन करने की जरूरत है। संशोधन के माध्यम से राज्यों के हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि केंद्र सरकार इस अनुच्छेद का दुरुपयोग न कर सके।
- अनुच्छेद – 355 राज्यों की रक्षा के लिए संघ के कर्तव्य का प्रावधान करता है।
- केंद्र द्वारा अनुच्छेद – 356 के तहत प्राप्त शक्ति का प्रयोग केवल राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के समाधान तक ही सीमित होना चाहिए ।
- आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मामलों से निपटने के लिए अमेरिका के होमलैंड सुरक्षा विभाग की तर्ज पर राष्ट्रीय एकता परिषद की स्थापना की जानी चाहिए ।
- राज्यपाल के पद पर गैर-राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति होनी चाहिए या ऐसे व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए, जो नियुक्ति से कम-से-कम दो वर्ष पहले सक्रिय राजनीति से दूर रहा हो ।
- राज्यपाल पर भी उसी रीति से महाभियोग का प्रावधान किया जाना चाहिए, जिस रीति से अनुच्छेद 61 के तहत राष्ट्रपति पर महाभियोग का उपबंध किया गया है।
- केंद्र-राज्य संबंधों पर गठित पहला आयोग, सरकारिया आयोग था। इस आयोग ने 1988 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
- अनुच्छेद – 263 के तहत स्थायी अंतर्राज्यीय परिषद का गठन करना इसकी प्रमुख सिफारिश थी।
अंतर्राज्यीय परिषद के कर्तव्य –
- राज्यों के बीच उत्पन्न होने विवादों की जांच करना और उन पर सलाह देना,
- उन विषयों की जांच करना और चर्चा करना, जिनमें कुछ या सभी राज्यों या संघ तथा एक या एक से अधिक राज्यों के साझा हित शामिल हों,
- ऐसे किसी भी विषय पर सुझाव देना और विशेष रूप से उस विषय के संबंध में नीति व कार्रवाई के बेहतर समन्वय के लिए सिफारिशें करना आदि ।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस