वैज्ञानिकों ने तेजी से पिघलती आर्कटिक बर्फ और महासागरीय अम्लीकरण
हाल ही में वैज्ञानिकों ने तेजी से पिघलती आर्कटिक बर्फ और महासागरीय अम्लीकरण के बीच संबंध प्रकट किया है ।
शोधकर्ताओं के एक दल ने आर्कटिक महासागर के पश्चिमी क्षेत्र के बदलते रासायनिक संघटन पर चिंता व्यक्त की है।
अन्य महासागरों के जल की तुलना में आर्कटिक महासागर में अम्लता के स्तर में तीन से चार गुना तीव्र वृद्धि को देखते हुए ऐसा निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है।
शोध दल ने बर्फ के पिघलने की तीव्र दर और समुद्र के अम्लीकरण की दर के बीच एक मजबूत सहसंबंध की पहचान की है।
समुद्री–बर्फ के पिघलने और PH मान में तीव्र कमी के बीच संबंध को निम्नलिखित तरीकों से समझाया गया है:
- समुद्री बर्फ के नीचे के जल में कार्बन डाइऑक्साइड का अभाव होता है। लेकिन, अब यह वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के संपर्क में है। इस तरह यह इसे स्वतंत्र रूप से ग्रहण कर सकता है।
- पिघली हुई हिम के जल के साथ मिश्रित समुद्री जल हल्का होता है। यह गहरे जल में आसानी से मिश्रित नहीं हो सकता।
- इसका अर्थ है कि कार्बन डाइऑक्साइड का सतह पर संकेन्द्रण होता रहता है। पिघली हई हिम का जल, समद्री जल में कार्बोनेट आयन की सांद्रता को कम कर देता है। इससे कार्बन डाइऑक्साइड को बाइकार्बोनेट में उदासीन करने की इसकी क्षमता कमजोर हो जाती है।
- महासागर अम्लीकरण से तात्पर्य दीर्घ अवधि में समुद्र के PH मान में कमी से है। यह मुख्य रूप से वायुमंडल से CO2 के अवशोषण के कारण होता है।
महासागरीय अम्लीकरण के संभावित दुष्प्रभावः
एक स्वस्थ महासागर पर आश्रित समुद्री जीवों (विशेषकर सीप और कोरल जैसे जीवों), पादपों तथा अन्य सजीवों की विविध आबादी के लिए घातक समस्याएं पैदा करता है।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस