पारे पर मिनामाता अभिसमय के छह वर्ष पूरे हुए
पारे पर मिनामाता अभिसमय को जेनेवा में वर्ष 2013 में अपनाया गया था। यह मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पारे के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिए विश्व की पहली कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है ।
इस अभिसमय का नाम उस जापानी शहर (मिनामाता) के नाम पर रखा गया है, जो 1950 के दशक में मिनामाता रोग का केंद्र बन गया था।
मिनामाता रोग पारे की गंभीर विषाक्तता के कारण होने वाली एक तंत्रिका संबंधी बीमारी है। यह संधि 2017 में लागू हुई थी । वर्तमान में, इसके 144 पक्षकार और 128 हस्ताक्षरकर्ता हैं।
भारत ने 2014 में इस अभिसमय पर हस्ताक्षर किए थे और 2018 में इसकी अभिपुष्टि (ratify) की थी। हालांकि, यह अभिपुष्टि 2025 तक पारा – आधारित उत्पादों और पारा यौगिकों से संबंधित प्रक्रियाओं के निरंतर उपयोग के लिए लचीलेपन के साथ की गई थी।
मिनामाता अभिसमय, अपने पक्षकार देशों से निम्नलिखित मांगें करता है:
- कारीगरी और लघु पैमाने के स्वर्ण खनन में पारे के इस्तेमाल तथा रिलीज़ को कम करने तथा जहां तक संभव हो पूर्णत समाप्त करने के प्रयास करना ।
- कोयले से संचालित विद्युत संयंत्रों व औद्योगिक बॉयलरों आदि से पारे के वायु में उत्सर्जन को नियंत्रित करना ।
- बैटरी, स्विच, लाइट, सौंदर्य प्रसाधन, कीटनाशक, दंत मिश्रण (कैविटी को भरने में प्रयुक्त) जैसे उत्पादों में पारे का उपयोग चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना या कम करना ।
- पारे की आपूर्ति और व्यापार में मौजूद समस्याओं को दूर करना;
- पारे का सुरक्षित भंडारण व निपटान सुनिश्चित करना;
- दूषित पारा स्थलों की समस्या का समाधान करने हेतु रणनीतियां तैयार करना ।
पारा:
- पारा प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक तत्व है। यह वायु, जल और मृदा में पाया जाता है।
- यह तंत्रिका तंत्र, थायरॉयड, लिवर, फेफड़े, प्रतिरक्षा प्रणाली, आंखों, मसूड़ों और त्वचा पर विषाक्त प्रभाव डाल सकता है।
- इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने प्रमुख ‘लोक स्वास्थ्य चिंता’ वाले शीर्ष दस रसायनों में से एक माना है ।
स्रोत – यू.एन.ई.पी.