पाटन पटोला
हाल ही में G-20 सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री ने इटली के प्रधानमंत्री को पाटन पटोला स्कार्फ़ भेंट स्वरूप प्रदान किया।
पाटन पटोला के बारे में
- पटोला एक दोहरे इकत से बुना हुआ कपड़ा है, जो आमतौर पर पाटन (उत्तरी गुजरात) में रेशम से बनाया जाता है।
- इकत, बुनाई से पहले ताने और बाने के धागों की प्रतिरोध रंगाई से बनते हैं। इसे वर्ष 2013 में भौगोलिक संकेतक (GI) टैग मिला था।
- शुद्ध रेशम में बुने गए दोहरे इकत या पटोला की प्राचीन कला 11वीं शताब्दी की है। इस विशिष्ट गुणवत्ता की उत्पत्ति बुनाई से पहले ताने और बाने पर अलग-अलग रंगाई या गाँठ रंगाई की एक जटिल और कठिन तकनीक में होती है, जिसे ‘बंधनी’ के रूप में जाना जाता है।
- इस अजीबोगरीब विशेषता की उत्पत्ति रंगाई या गाँठ रंगाई की एक जटिल और कठिन तकनीक से हुई है, जिसे बुनाई से पहले अलग-अलग ताने और बाने पर ‘बंधनी’ के रूप में जाना जाता है।
- पटोला कपड़ों में दोनों तरफ रंगों और डिज़ाइन की समान तीव्रता होती है। पटोला शीशम और बाँस की पट्टियों से बने आदिम हाथ से संचालित हार्नेस करघे पर बुना जाता है। करघा एक स्लैंट पर स्थित होता है।
- यह प्रक्रिया श्रम-गहन व समय लेने वाली है और इसके लिये उच्च स्तर के कौशल एवं विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। छह गज की एक साड़ी के लिये ताने-बाने के धागों पर टाई-डाइड डिज़ाइन तैयार करने में तीन से चार महीने का समय लगता है।
- जबकि पटोला रखना और पहनना गर्व की बात मानी जाती है, वहीं इसकी ऊँची कीमत के कारण यह कपड़ा आम लोगों की पहुँच से बाहर रहा है। इस कला के प्रमुख कलाकारों में से एक पाटन का साल्वी परिवार है। अन्य आमतौर पर पहना जाने वाला पटोला राजकोट पटोला है, जो एक सपाट करघे पर बुना जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध से पहले इंडोनेशिया पटोला का प्रमुख खरीदार था।
स्रोत – द हिन्दू