पश्चिमी भारत में भारी वर्षा के लिए उत्तरदायी कारक
हाल ही में, अतिवृष्टि से पश्चिमी भारत में बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे वहां का जन जीवन एक बार फिर से बुरी तरह प्रभावित हो गया है।
भारी वर्षा के लिए उत्तरदायी कारक:
स्थलाकृतिः पश्चिमी घाट दक्षिण-पश्चिम मानसून से आने वाली मानसूनी पवनों के लिए एक प्रमुख अवरोध के रूप में कार्य करता हैं । पर्वतीय ढाल (प्रवणता) का वर्षा की स्थिति पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी घाट अरब सागर तट के समानांतर विस्तारित है। इसका विस्तार महाराष्ट्र-गुजरात सीमा से केरल के दक्षिणी सिरे तक लगभग 1,800 कि.मी. तक है।
जलवायु परिवर्तनः जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है, वायुमंडल की आर्द्रता-ग्राही क्षमता भी बढ़ती जाती है। अंततः यह आर्द्रता भारत के भू-भाग पर मानसून के मौसम में प्रबल संवहनी धाराओं के रूप में परिणत होती है। नासा (NASA) सहित विभिन्न एजेंसियों के समुद्र संबंधी डेटा से पता चलता है कि विगत कई वर्षों से अरब सागर की सतह का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। समुद्री जल का सतही तापमान जितना अधिक होता है, उनके ऊपर से प्रवाहित होने वाली पवनों में उतनी ही अधिक आर्द्रता बढ़ती जाती है।
अंनियंत्रित विकासः शहरीकरण और अन्य भूमि उपयोग के साथ ही एरोसोल भी स्थानीय रूप से भारी वर्षा की घटनाओं में योगदान करते हैं।
प्रभाव
बांधों से अतिप्रवाह के कारण भूस्खलन और आकस्मिक बाढ़ (flash floods) का जोखिम बढ़ गया है। साथ ही, शहरी क्षेत्रों में तूफानों के कारण अतिवृष्टि से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इन क्षेत्रों में कृषि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
स्रोत – द हिन्दू