सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकर से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत वर्ष 2017 में अधिसूचित नियमों को वापस लेने या संशोधित करने के लिये कहा है।
वर्ष 2017 के नियम:
- पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (संपत्ति व जानवरों की देखभाल और रखरखाव) नियम, 2017 को पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत स्थापित किया गया है।
- अधिनियम के तहत ये नियम न्यायाधीश को मुकदमे का सामना कर रहे किसी व्यक्ति के मवेशियों को जब्त करने की अनुमति देते हैं।
- इसके बाद जानवरों को पशु चिकित्सालय,पशु आश्रयों इत्यादि में भेज दिया जाता है।
- ऐसे जानवरों को अधिकारियों द्वारा गोद भी दिया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय का अवलोकन:
- ये नियम स्पष्ट रूप से पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 29 के विपरीत हैं, जिसके तहत क्रूरता का दोषी पाया गया व्यक्ति केवल अपने जानवरों को खो सकता है।
- सरकार से कहा गया है कि या तो वह इन नियमों में बदलाव करे या न्यायालय से स्टे ले ले।
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960:
- यह पशुओं को अनावश्यक पीड़ा पहुँचाने से रोकने के लिए अधिनियमित किया गया है।
- इस अधिनियम के तहत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना की गई है।
- यह पशु बाजारों, डॉग ब्रीडर्स, एक्वेरियम और पालतू मछलियों की दुकान के मालिकों को नियंत्रित करता है।
- इस अधिनियम के तहत जानवरों से की जाने वाली निर्दयता को प्रतिबंधित किया गया है।
संवैधानिक स्थिति:
- भारत के संविधान में मूल कर्त्तव्य एक महत्वपूर्ण भाग है।अनुच्छेद 51(क) (छ) में एक प्रावधान किया गया है, जिसके अंतर्गत प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें झील,नदी, वन्यजीव की रक्षा करने का कर्तव्य दिया गया है।
- संविधान में दी गयी इस व्यवस्था से प्रेरणा लेकर भारत की संसद में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और स्लाटर हाउस रूल्स, 2001 बनाया गया।
- अनुच्छेद-48 के अंतर्गत एक नीति-निदेशक तत्त्व के रूप में शामिल किया गया है, जिसमें कहा गया है कि राज्य “आधुनिक और वैज्ञानिक आधारों पर कृषि और पशुपालन प्रणालियों” को संगठित करने का प्रयास करेगा तथा विशेष रूप से गायों एवं बछड़ों के तथा अन्य दुधारू एवं वाहक पशुओं की नस्लों के संरक्षण और सुधार करने और उनके वध को प्रतिबंधित करने के लिए कदम उठाएगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस