पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986 के मौजूदा प्रावधानों को गैर-आपराधिक बनाने का प्रस्ताव

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986 के मौजूदा प्रावधानों को गैरआपराधिक बनाने का प्रस्ताव

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों को गैर-आपराधिक बनाने के लिए संशोधन प्रस्तुत किए हैं।

मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, (EPA) 1986 के मौजूदा प्रावधानों को गैर-आपराधिक बनाने के प्रस्ताव पर सुझाव मांगे हैं।

प्रस्तावित बदलाव

  • गंभीर उल्लंघनों के मामले में भारतीय दंड संहिता, 1860 के आपराधिक प्रावधानों के तहत कार्रवाई को जारी रखा जाए। वहीं छोटे मामलों में विफलता या उल्लंघन या गैर-अनुपालन को दंड द्वारा निपटाया जा सकता है।
  • जुर्माने की राशि को बढ़ाकर 5 लाख रूपये किया जाये। इसे 5 करोड़ रूपये तक बढ़ाया जा सकता है।
  • एक वर्ष की अवधि के बाद भी लगातार उल्लंघन के मामलों में जुर्माना 50,000 रुपये प्रति दिन से कम नहीं होगा। इसे बढ़ाकर 5 लाख रूपये भी किया जा सकता है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 17A के तहत पर्यावरण संरक्षण कोष का गठन किया जाएगा। इसका गठन पर्यावरण क्षति के लिए न्याय–निर्णायक अधिकारी द्वारा लगाए गए दंड के भुगतान के लिए किया जाएगा।
  • निर्णय से असंतुष्ट व्यक्तियों को राष्ट्रीय हरित अधिकरण में अपील करने की अनुमति देने के लिए धारा 15D को जोड़ा जाएगा।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम,1986 भारतीय संविधान के अनुच्छेद-253 के तहत अधिनियमित किया गया था। इसे वर्ष 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के आधार पर मानव पर्यावरण के संरक्षण और सुधार के लिए उचित कदम उठाने हेतु पारित किया गया था।

इसने दीर्घकालिक पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए रूपरेखा निर्धारित की है। साथ ही, इसने पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करने वाली स्थितियों के विरुद्ध त्वरित और पर्याप्त कदम उठाने की एक प्रणाली भी निर्धारित की है ।

स्रोतद हिन्दू

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