राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) का डेटामहिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल में महत्वपूर्ण सुधार दर्शाता है ।
प्रमुख आँकड़े
- भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) पहली बार प्रतिस्थापन स्तर (replacement level) से नीचे गिरकर 0 हो गई है। TER प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या है।
- परिवार नियोजन के लिए आधुनिक गर्भ निरोधकों का उपयोग 8% से बढ़कर 56.5% हो गया है। साथ ही, परिवार नियोजन (कोई भी विकल्प) NFHS-4 के 53.5% से सुधरकर 66.7% हो गया है। अखिल भारतीय स्तर पर संस्थागत प्रसव, NFHS-4 के 79 प्रतिशत से बढ़कर 89 प्रतिशत हो गया है।
- 20-24 वर्ष की आयु की महिलाओं में 18 वर्ष की आयु से पहलेविवाह का प्रतिशत 8% से सुधरकर23.3% हो गया है।
- वर्ष 1994 में जनसंख्या और विकास पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICPD) ने प्रजनन स्वास्थ्य को परिभाषित किया था। इस परिभाषा में परिवार के आकार और विवाह के सही समय पर निर्णय लेने सहित स्वैच्छिक व सुरक्षित यौन एवं प्रजनन विकल्पों को बढ़ावा देने संबंधी दृष्टिकोणों को शामिल किया गया था।
प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायः
- राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000 परिवार नियोजन सेवा वितरण में स्वैच्छिक एवं सूचित विकल्प और लक्ष्य-मुक्त दृष्टिकोण की निरंतरता को बढ़ावा देती है।
- जननी सुरक्षा योजना (संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए) जैसी लाभार्थियों को सशर्त नकद हस्तांतरण योजनाएं और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK), प्रधान मंत्री मातृत्व वंदना योजना, प्रधान मंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) आदि सहित अन्य योजनाएं।
- गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) अधिनियम 2021 (MITPA) के माध्यम से सुरक्षित गर्भपात प्रथाओं तक पहुंच सुनिश्चित की गई है।
प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल में चुनौतियां
जागरूकता और शिक्षाकी कमी, बाल विवाह, महिलाओं की वित्तीय निर्भरता, आधुनिक गर्भ निरोधकों तक पहुंच संबंधी चुनौती तथा अवैध गर्भपात।
विशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में क्लीनिक्स और स्वास्थ्य केंद्रों की दूरी, गर्भनिरोधक व प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल के बारे में निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न करती है।
स्रोत – द हिन्दू