पत्तन पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (GTTP) शुरू किया

पत्तन पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (GTTP) शुरू किया

हाल ही में केंद्र सरकार ने 2030 तक ग्रीन शिपिंग का वैश्विक हब बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (Green Tug Transition Programme – GTTP) शुरू किया है।

साथ ही, भारत के पहले ‘नेशनल सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन ग्रीन पोर्ट एंड शिपिंग (NCoEGPS)’ का भी उद्घाटन किया गया है।

GTTP कार्यक्रम ‘ग्रीन हाइब्रिड टग्स’ से शुरू होगा, जो ग्रीन हाइब्रिड प्रोपल्शन सिस्टम से संचालित होगा। इसके बाद मेथनॉल, अमोनिया व हाइड्रोजन जैसे गैर- जीवाश्म ईंधन समाधानों को अपनाया जाएगा।

वर्ष 2025 तक सभी बड़े पत्तनों पर कार्य शुरू करने के लिए प्रारंभिक ग्रीन टग्स (हरित कर्षण नौकाओं) के लिए लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

वर्ष 2030 तक कम से कम 50 प्रतिशत टग्स को ग्रीन टग्स में परिवर्तित किए जाने की संभावना है।

टग बोट्स या टग्स छोटे आकार के लेकिन शक्तिशाली पोत होते हैं। इनका उपयोग अन्य बड़े पोतों को पत्तन से निकालने या पत्तनों की ओर ले जाने अथवा फंसे पोतों को खींचने या धकेलने के लिए किया जाता है ।

ग्रीन टग के लाभ

  • यह उत्सर्जन को काफी कम कर देगा, क्योंकि देश सतत विकास का लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
  • यह भारत के मिशन लाइफ (LIFE) आंदोलन और 2070 तक कार्बन तटस्थ बनने के प्रयासों के अनुकूल है।
  • NCoEGPS गुरुग्राम में स्थित है। यह संस्थान पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय तथा एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) के बीच सहयोग से स्थापित किया गया है।
  • इस संस्थान का उद्देश्य पत्तन, तटीय और अंतर्देशीय जल परिवहन में ‘मेक इन इंडिया’ को सशक्त बनाना है ।

ग्रीन शिपिंग के लिए आरंभ की गई अन्य पहलें

  • भारत को ग्रीन शिपिंग से संबंधित एक पायलट परियोजना का संचालन करने के लिए IMO ग्रीन वॉयेज 2050 परियोजना के तहत पहले देश के रूप में चुना गया है ।
  • सतत समुद्री क्षेत्र और जीवंत नीली अर्थव्यवस्था के लिए मैरीटाइम विज़न डॉक्यूमेंट, 2030 जारी किया गया है।
  • पारादीप पत्तन, दीनदयाल पत्तन और वी. ओ. चिदंबरम पत्तन को हाइड्रोजन हब के रूप में विकसित किया जाएगा। ये हाइड्रोजन हब 2030 तक हरित हाइड्रोजन का प्रबंधन, भंडारण और उत्पादन करने में सक्षम होंगे।

स्रोत – द हिन्दू

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