मुख्य न्यायाधीश के स्थानांतरण का मुद्दा

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हाल ही में अधिवक्ताओं के विरोध के बीच, केंद्र ने मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के स्थानांतरण को अधिसूचित किया है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद-22 द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रपति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के परामर्श के बाद, मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को मेघालय उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया है।

कानूनी पेशे से संबंधित विभिन्न वर्गों ने स्थानांतरण की तीखी आलोचना की है, क्योंकि इसे “दंडात्मक” माना गया है।

न्यायाधीशों के स्थानांतरण की प्रक्रिया

  • एक न्यायाधीश के स्थानांतरण के प्रस्ताव की पहल भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा की जानी चाहिए, जिसकी राय इस संबंध में निर्धारक होती है।
  • किसी न्यायाधीश के प्रथम या उसके बाद के स्थानांतरण के लिए उसकी सहमति की आवश्यकता नहीं होगी।
  • सभी स्थानान्तरण जनहित में किए जाने अपेक्षित हैं।
  • संविधान उन आधारों या प्रक्रिया का उल्लेख नहीं करता है, जिनके द्वारा ऐसी शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
  • न्यायाधीशों का चयन करने, नियुक्त करने और स्थानांतरित करने की शक्ति तीन न्यायाधीशों के मामलों में उच्चतम न्यायालय के निर्णय से ली गई है।

न्यायाधीशों के स्थानांतरण के विषय पर उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णयों से निम्नलिखित बिंदु उभर कर आये हैं:

  • न्यायाधीश का स्थानांतरण दंडात्मक उपाय नहीं हो सकता।
  • न्याय के बेहतर प्रशासन के लिए ‘जनहित’ पर ही स्थानांतरण का आदेश दिया जा सकता है।
  • प्रभावी परामर्श के बाद CJI की सहमति के आधार पर ही राष्ट्रपति द्वारा स्थानांतरण का आदेश दिया जा सकता है।

अनुच्छेद 222

एक उच्च न्यायालय से किसी अन्य उच्च न्यायालय में न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश सहित) के स्थानांतरण के लिए प्रावधान किये गए हैं।

स्रोत – द हिन्दू

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