न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु कॉलेजियम प्रणाली

न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु कॉलेजियम प्रणाली

हाल ही में, न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु कॉलेजियम की अनुशंसाओं पर सरकार द्वारा किये जा रहे बिलंब को लेकर उच्चतम न्यायालय ने चिंता व्यक्त की है।

  • उच्चतम न्यायालय ने कॉलेजियम की अनुशंसाओं पर कार्रवाई करने और उच्च न्यायालयों (HCs) में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार की ओर से किए जा रहे विलंब पर चिंता प्रकट की है।
  • न्यायालय ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि न्यायाधीशों की नियुक्तियों में विलंब के कारण लोकतंत्र के तीसरे स्तंभ की कार्यप्रणाली प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है। इसके परिणामस्वरूप, अंततः प्रशासनिक व्यवस्था भी बाधित होगी।
  • 1 अगस्त 2021 तक देश के 25 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के कुल 1,098 स्वीकृत पदों में से 455 पद रिक्त हैं।
  • इस वर्ष के आरंभ में ही, पी.एल.आर. प्रोजेक्ट्स लिमिटेड बनाम महानदी कोलफील्ड्स प्राइवेट लिमिटेड वाद में उच्चतम न्यायालय ने प्रथम बार उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु सरकार के लिए न्यायिक रूप से अनिवार्य समय-सीमा निर्धारित की थी।
  • उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा नियुक्तियों की अनुशंसा किए जाने के उपरांत, केंद्र सरकार को 3-4 सप्ताह के भीतर ही कॉलेजियम की अनुशंसाओं के अनुसार नियुक्तियां करनी चाहिए थीं।

कॉलेजियम प्रणालीः इस प्रणाली के अंतर्गत भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI),  SC के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों और एक HC के तीन न्यायाधीशों (संबंधित HC में नियुक्तियों के मामले में) से युक्त एक समिति होती है। यह समिति, क्रमशःSC और HC में न्यायाधीशों की नियुक्ति अथवा स्थानांतरण से संबंधित निर्णय लेती है।

तीन न्यायाधीश वाद (Three Judges Cases):

1.एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ वाद, 1981 (इसे न्यायाधीशों के स्थानांतरण से संबंधित वाद भी कहा जाता है)।

2.सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑनरिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाद, 19931

3.वर्ष 1998 में राष्ट्रपति द्वारा एक प्रेज़िडेंशियल रेफरेंस जारी किया गया। इससे कॉलेजियम का विस्तार हुआ।

कॉलेजियम प्रणाली

मूल प्रावधान: संविधान के अनुच्छेद 124(2) और अनुच्छेद 217(0) के तहत, उच्चतम न्यायालय/उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा CJI से परामर्श के उपरांत नियुक्त किया जाता है। सरकार द्वारा CJI की अनुशंसा का अनुपालन करना बाध्यकारी नहीं था।

न्यायिक अधिग्रहण : वर्ष 1993 में, उच्चतम न्यायालय ने SC और HC में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में प्रमुखता धारण करते हुए कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की।

CJI की प्रमुखता: वर्ष 1998 में, नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह निर्णय दिया कि “परामर्श’ प्रभावी होनाचाहिए और CJI के मत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

संघटन/संरचना : कॉलेजियम प्रणाली के तहत, SC के वरिष्ठ पांच न्यायाधीशों की एक समिति गोपनीय रूप से न्यायाधीशों के नामों का चयन करती है।

वीटो शक्ति : सरकार कॉलेजियम की अनुशंसाओं को लौटा सकती है, किंतु अनुशंसाएं पुनः भेजे जाने पर सरकार उन्हें स्वीकार करने के लिए बाध्य होगी।

स्रोत – द हिन्दू

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