हाल ही में नीति आयोग ने स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण (waste segregation at source: WSS) को मजबूत करने के लिए व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने हेतु नीतिगत दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
इसका उद्देश्य विभिन्न हितधारकों के बीच WSS प्रथाओं के अंगीकरण को सुविधाजनक बनाना है। भारत वार्षिक रूप से लगभग 49.8 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न करता है। वर्ष 2050 तक अपशिष्ट उत्पादन में तीन गुना वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
WSS का लाभ
- यह द्वितीयक पृथक्करण की आवश्यकता को कम करता है, जिसके लिए पूंजी, ऊर्जा और भूमि की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
- इसके अन्य प्रकार के अपशिष्टों से दूषित होने की संभावना कम होती है। इसलिए इसका पुनर्चक्रण करने की अधिक संभावना है।
- इसके परिणामस्वरूप लैंडफिल तक कम अपशिष्ट पहुंचता है। इससे प्रत्यक्ष रूप से एक लैंडफिल की उपयोग अवधि में वृद्धि होती है। इसके फलस्वरूप नए लैंडफिल के लिए भूमि की मांग में कमी आती है।
- WSS के समक्ष विद्यमान बाधाओं में पृथक किए गए अपशिष्ट के लिए सीमित/अपर्याप्त बाजार, शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) की अपशिष्ट और पृथक्कृत अपशिष्ट प्रबंधन क्षमता में विद्यमान अंतराल, असहज उत्पाद, पैकेजिंग और कूड़ेदान का डिजाइन आदि शामिल हैं।
सिफारिशें:
- स्रोत पर पृथक्करण को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहनों और दंडात्मक कार्रवाई का उपयोग जैसे कि पे ऐज यू (अपशिष्ट उत्पादक से अपशिष्ट संग्रह शुल्क की वसूली)।
- उत्पादों में अनिवार्य पुनर्चक्रण योग्य सामग्री, हरित सार्वजनिक खरीद नीति आदि जैसे उपायों को लागू करके पृथक किए गए अपशिष्ट के लिए बाजार को मजबूत करना।
- पर्यावरण के अनुकूल/संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए ग्रीननज (हरित प्रोत्साहन) को अपनाया जाना चाहिए।
स्रोत – द हिन्दू