निवारक निरोध (Preventive detentions) में 23.7% की वृद्धि
पिछले वर्ष की तुलना में निवारक निरोध (Preventive detentions) में 23.7% की वृद्धि हुई है।
हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने भारत में अपराध रिपोर्ट 2021′ जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार 1.1 लाख से अधिक लोगों को निवारक निरोध के तहत हिरासत में रखा गया था। यह संख्या वर्ष 2017 के बाद से सर्वाधिक है।
वर्ष 2014-2021 के दौरान राजद्रोह (Sedition) के अधिकांश मामले असम में दर्ज किए गए थे। इसके बाद हरियाणा में ऐसे सर्वाधिक मामले दर्ज किए गए थे।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A में राजद्रोह को परिभाषित किया गया है।
निवारक निरोध से तात्पर्य किसी व्यक्ति को इस संदेह पर हिरासत में लेना है कि वह व्यक्ति कुछ ऐसा गलत कार्य कर सकता है, जो राज्य (सरकार) के विरोध में हो।
निवारक निरोध से संबंधित संवैधानिक प्रावधान –
- दंडात्मक निरोध (अपराध होने के बाद हिरासत) के तहत अधिकारी द्वारा हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है।
- इसके विपरीत, निवारक निरोध के मामले में ऐसी बाध्यता नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 22(6) के अनुसार निवारक निरोध के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को हिरासत में लिए जाने का कारण बताना अनिवार्य नहीं है, यदि इस तरह का खुलासा लोक हित के खिलाफ हो।
- निवारक निरोध की अवधि केवल एक सलाहकार बोर्ड की सलाह पर ही 3 महीने से अधिक की हो सकती है। इस बोर्ड में ऐसे व्यक्ति शामिल होते हैं, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या रह चुके हैं या इस पद पर नियुक्त होने के पात्र हैं।
IPC के तहत निम्नलिखित प्रकार के अपराध को राजद्रोह के रूप में परिभाषित किया गया है:
- जब कोई व्यक्ति शब्दों या अन्य तरीकों से भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ घृणा या अवमानना व्यक्त करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है; या
- वह सरकार के प्रति असंतोष (Disaffection) उत्पन्न करता है या ऐसा करने का प्रयास करता है।
- केदार नाथ बनाम बिहार राज्य, 1962 मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक नागरिक को यह अधिकार है कि वह सरकार या उसके द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में जो सोचता है उसकी आलोचना या टिप्पणी करे।
- हालांकि, यह तभी तक वैध है जब तक कि उसकी आलोचना या टिप्पणी लोगों को हिंसा के लिए नहीं उकसाए।
स्रोत – द हिन्दू