निवारक निरोध पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि कानून और व्यवस्था के उल्लंघन की संभावित आशंका, निवारक निरोध (Preventive Detention) का आधार नहीं हो सकती है ।

  • उच्चतम न्यायालय ने ‘बांका स्नेहाशीला बनाम तेलंगाना राज्य’ वाद में यह निर्णय दिया है कि ‘कानून और व्यवस्था’ के उल्लंघन की संभावित आशंका के आधार पर निवारक निरोध के उपबंध को लागू नहीं किया जा सकता है।
  • एक निवारक निरोध आदेश केवल तभी पारित किया जा सकता है, जब बंदी के कारण सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना हो।
  • उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि ‘लोक व्यवस्था के उल्लंघन’ और इसे प्रभावित करने वाले मामले, बहुसंख्य जनता को प्रभावित करते हैं, जबकि इसके विपरीत ‘कानून और व्यवस्था के उल्लंघन में कम गंभीर प्रकृति वाले मामले शामिल होते हैं।
  • इसके साथ ही, निवारक निरोध अनुच्छेद 21 (विधि की सम्यक प्रक्रिया (Due process of law)) के दायरे अंतर्गत होना चाहिए, तथा यह अनुच्छेद 22 (मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और निरोध के विरुद्ध सुरक्षा) के साथ सुसंगत होना चाहिए।

निवारक निरोध के बारे में

‘निवारक निरोध’ किसी व्यक्ति द्वारा संभावित अपराध या अनुचित कृत्य किए जाने के संदेह के आधार पर संबंधित व्यक्ति को हिरासत में लेने की कार्रवाई है, जिसे दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 151 द्वारा लागू किया जाता है ।

संवैधानिक प्रावधान:

  • संविधान का अनुच्छेद-22, गिरफ्तार या हिरासत (निरोध) में लिये गए व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है। निरोध दो प्रकार का होता है- दंडात्मक और निवारक।
  • दंडात्मक निरोध से तात्पर्य किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अपराध के लिये अदालत में मुकदमे और दोषसिद्धि के बाद दंडित करने से है।
  • जबकि, निवारक निरोध में किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे और अदालत द्वारा दोषसिद्धि के हिरासत में लिया जाता है।
  • अनुच्छेद 22 के दो भाग हैं- पहला भाग साधारण कानून के मामलों से संबंधित है, और दूसरा भाग निवारक निरोध कानून के मामलों से संबंधित है।
  • संविधान का यह अनुच्छेद व्यक्ति को कुछ अधिकार प्रदान करता है-

दंडात्मक निरोध के तहत दिये गए अधिकार

  • गिरफ्तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत करवाना, अपनी रुचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करना और प्रतिरक्षा प्राप्त करना। यात्रा के समय को छोड़कर 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने का अधिकार।
  • हालांकि, ये अधिकार किसी तत्समय शत्रु अन्यदेशीय नागरिक या निवारक निरोध कानूनों के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को प्रदान नहीं किए गए हैं।

निवारक निरोध के तहत दिये गए अधिकार

  • किसी व्यक्ति की नज़रबंदी 3 महीने से अधिक नहीं हो सकती, जब तक कि एक सलाहकार बोर्ड विस्तारित नज़रबंदी हेतु पर्याप्त कारण प्रस्तुत नहीं करता है।
  • बंदी को निरोध आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने का अवसर दिया जाना चाहिये।

संसद द्वारा बनाए गए कुछ प्रमुख ‘निवारक निरोध कानून’

  • निवारक निरोध अधिनियम, 1950 जो वर्ष 1969 में समाप्त हो गया।
  • आंतरिक सुरक्षा का रखरखाव अधिनियम (मीसा), 1971, इसे वर्ष 1978 में निरस्त किया गया।
  • विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (COFEPOSA),
  • राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए), 1980
  • कालाबाज़ारी की रोकथाम और आवश्यक वस्तु की आपूर्ति का रखरखाव अधिनियम (PBMSECA),
  • आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (टाडा), 1985, वर्ष 1995 में निरस्त किया गया।
  • नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (PITNDPSA), 1988 में अवैध यातायात की रोकथाम।
  • आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा), 2002 को वर्ष 2004 में निरस्त किया गया।

स्रोत –द हिन्दू

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