कश्मीर की नमदा कला का संवर्धन

कश्मीर की नमदा कला का संवर्धन

हाल ही में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के तहत कौशल भारत परियोजना के द्वारा  कश्मीर की नमदा कला जो एक लुप्त होती शिल्प कला हिया को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित किया जा रहा है।

‘पीएमकेवीवाई’ के जम्मू-कश्मीर के छह जिलों के लगभग 2,200 उम्मीदवारों ने इस पारंपरिक कला में प्रशिक्षण प्राप्त किया है ।

स्थानीय उद्योग भागीदारों के सहयोग से कार्यान्वित यह परियोजना कौशल विकास और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की शक्ति को प्रदर्शित करती है ।

नमदा कला के बारे में:

नमदा शब्द की उत्पत्ति मूल शब्द ‘नामता’ (ऊनी सामान के लिये संस्कृत शब्द) से हुई है। इसकी उत्पत्ति 16वीं शताब्दी में हुई थी और इसे शाह-ए-हमदान नामक सूफी संत द्वारा पेश किया गया था ।

नामदा को विभिन्न संस्कृतियों विशेष रूप से एशियाई देशों जैसे- ईरान, अफगानिस्तान और भारत में एक शिल्प कला के रूप में जाना जाता है।

भारत में नमदा पारंपरिक कला ईरानी लोगों के साथ आई और मुगल एवं राजपूत शासकों के संरक्षण में कश्मीर में फ़ैल गई और यह तब से इसे एक पारंपरिक कश्मीरी शिल्प का दर्जा प्राप्त है

इस कला में भेड़ के ऊन और हाथ की कढ़ाई का उपयोग करके फेल्टेड कालीन बनाना शामिल है । नमदा गलीचे गर्मी प्रदान करते हैं और फर्श कवरिंग और घर की सजावट के रूप में उपयोग किए जाते हैं।

भारत में नामदा पारंपरिक कला के दो मुख्य केंद्र (कश्मीर में श्रीनगर और राजस्थान में टोंक) हैं।

स्रोत – पी.आई.बी.

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