सरकार देश में एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में
हाल ही में लोक सभा को एक लिखित उत्तर में विधि मंत्री ने बताया है कि लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के चुनाव एक साथ आयोजित कराने का मामला विधि आयोग को सौंप दिया गया है।
- एक साथ चुनाव कराने का विचार 1983 में चुनाव आयोग ने प्रस्तावित किया था । ऐसे ही सुझाव विधि आयोग और नीति आयोग ने भी दिए हैं।
- एक साथ चुनाव कराने की प्रणाली के तहत, लोक सभा और राज्य विधान सभाओं के चुनावों की योजना कुछ इस तरह बनाई जाएगी कि एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता एक ही दिन दोनों चुनावों के लिए मतदान कर सकेंगे ।
- वर्ष 1967 तक लोक सभा और राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव साथ-साथ आयोजित होते थे। हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधान सभाओं तथा 1970 में लोकसभा के विघटन के बाद इस व्यवस्था का क्रम टूट गया।
- इस प्रकार राज्य विधान सभाओं और लोक सभा के चुनाव अलग-अलग आयोजित किए जाने लगे ।
एक साथ चुनाव के पक्ष में तर्क
- लंबे समय तक आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण नीतिगत पंगुता (Policy paralysis) की स्थिति बनी रहेगी।
- राजनीतिक दल व व्यक्तिगत उम्मीदवार चुनावों में बड़ी मात्रा में धन का व्यय करेंगे।
- एक साथ चुनाव आयोजन में बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात करना पड़ेगा। इससे अन्य सुरक्षा उद्देश्य प्रभावित होंगे ।
- सामान्य जन-जीवन में बाधा पैदा होगी। साथ ही, अन्य आवश्यक सेवाओं का संचालन भी प्रभावित होगा ।
एक साथ चुनाव के विपक्ष में तर्क
- परिचालनात्मक व्यवहार्यता संबंधी चुनौती विद्यमान है। उदाहरण के लिए एक साथ चुनाव चक्र को पहली बार कैसे समकालिक बनाया जाएगा ।
- लोक सभा/राज्य विधान सभाओं के कार्यकाल में कटौती और विस्तार में संवैधानिक चुनौतियां मौजूद हैं।
- इस कटौती या विस्तार के लिए संविधान के कुछ प्रावधानों में संशोधनों की आवश्यकता होगी। अनुच्छेद 83, 84, 172, 174, 356 आदि में संशोधन करना होगा ।
- राष्ट्रीय और राज्य संबंधी मुद्दे अलग-अलग होते हैं। एक साथ चुनाव से मतदाताओं का निर्णय प्रभावित हो सकता है।
स्रोत – इकोनॉमिक्स टाइम्स