दूरसंचार को शासित करने वाले नए कानूनी ढांचे की आवश्यकता पर परामर्श-पत्र जारी

दूरसंचार को शासित करने वाले नए कानूनी ढांचे की आवश्यकता पर परामर्शपत्र जारी

हाल ही में संचार मंत्रालय ने भारत में दूरसंचार को शासित करने वाले नए कानूनी ढांचे की आवश्यकता पर परामर्श-पत्र जारी किया है ।

प्रारूप पत्र में 5G, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) आदि जैसी नई प्रौद्योगिकियों के उद्भव को ध्यान में रखा गया है। साथ ही, इसमें आधुनिक और भावी जरूरतों के अनुरूप एक कानूनी ढांचे की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।

यह कानूनी ढांचा 21वीं सदी के भारत में दूरसंचार की वास्तविकताओं को संबोधित करेगा।

नए कानून के प्रमुख प्रस्ताव

  • यह दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने तथा दूरसंचार नेटवर्क और अवसंरचना निर्माण एवं उसके रख-रखाव के लिए सरकार के विशेषाधिकार को रेखांकित करता है।
  • यह विनियमन सुनिश्चित करने और निवेश को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त प्रावधानों के माध्यम से विनियामक ढांचे को सरल करता है।
  • यह स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए विनियामकीय स्पष्टता लाता है। वर्तमान में, स्पेक्ट्रम का आवंटन नीतियों और न्यायालयों के आदेशों के आधार पर किया जाता है।
  • कनेक्टिविटी बनाए रखने के लिए एक समान और बिना भेदभाव वाले ढांचे के माध्यम से प्रभावी ‘मार्ग के अधिकार’ (राइट ऑफ वे) का उल्लेख भी करता है। (किसी अन्य की संपत्ति से होकर एक विशेष मार्ग से गुजरने के कानूनी अधिकार को ‘मार्ग का अधिकार’ कहा जाता है।)
  • मौजूदा सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि (USOF) में व्यापक सुधार का प्रयास करता है। इसमें एक व्यापक “दूरसंचार विकास कोष” का प्रस्ताव किया गया है।
  • सार्वजनिक आपात और लोक सुरक्षा की स्थितियों से निपटने तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में उपाय करने के लिए उपयुक्त प्रावधान भी करता हैं।
  • इसमें विलय, अधिग्रहण आदि के लिए फ्रेमवर्क का भी प्रावधान है। इसके अलावा इसमें दिवालियापन और दंड से संबंधित प्रावधान भी हैं ।

स्पेक्ट्रम आवंटन पर CAG के प्रमुख निष्कर्ष

  • वर्ष 2012 और वर्ष 2021 के बीच भारत में स्पेक्ट्रम आवंटन तदर्थ (ad hoc) आधार पर किया गया था। इससे सरकार ने संसाधन की उपलब्धता में अनिश्चितता का अनुभव किया है।
  • सरकार को आवंटित स्पेक्ट्रम का या तो पूरी तरह से उपयोग नहीं किया गया या बिल्कुल ही उपयोग नहीं किया गया।
  • दूरसंचार विभाग ने विश्व भर में तकनीकी विकास का आकलन करने के लिए कदम नहीं उठाए हैं। राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 में यह आकलन अनिवार्य किया गया था।

स्रोत द हिन्दू

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