दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) की समीक्षा हेतु सुझाव
वित्त संबंधी स्थायी संसदीय समिति (PSC) ने दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) की समीक्षा का सुझाव दिया है।
वित्त संबंधी स्थायी संसदीय समिति (Parliamentary Standing Committee: PSC) के अनुसार दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code: IBC) तनावग्रस्त कंपनियों को त्वरित समाधान विकल्प प्रस्तुत करने और लेनदार केअधिकारों की रक्षा करने के मूल उद्देश्य से विचलित हो गई है।
- PSC ने 95% तक हेअरकट (मूल कीमत में कटौती) के साथ निम्न वसूली दरों को रेखांकित किया है ।
- राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (National Company Law Tribunal: NCLT) के समक्ष 71 प्रतिशत से अधिक मामले, IBC द्वारा अधिदेशित 180 दिनों की अवधि से अधिक समयसे लंबित हैं। इससे इन मामलों के समाधान की प्रक्रिया में विलंब हो रहा है।
PSC द्वारा चिन्हित मुद्दे:
- नए स्नातकों को दिवाला पेशेवर समाधानकर्ता (Resolution Professionals: RPs) के रूप में नियुक्त किए जाने और व्यापक तथा जटिल निगमों के मामलों को संभालने में उनकी योग्यता पर आशंकाएं व्यक्त की गई हैं।
- NCLT द्वारा मामलों को स्वीकार करने और समाधान योजनाओं को स्वीकृति प्रदान करने की अत्यंत मंद गति, दिवाला समाधान में विलंब का मुख्य कारण है।
- NCLT के लिए स्वीकृत कार्यबल में 50% से अधिक रिक्तियां हैं।
अनुशंसाएं
- RPsके लिए कुछ नियम निर्धारित किए जाएं, ताकि उचित मानकों को लागू किया जा सके और निष्पक्ष स्व-विनियमन सुनिश्चित किया जा सके।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को NCLT का न्यायिक सदस्य होना चाहिए तथा अन्य सदस्यों के लिए भी बेहतर प्रशिक्षण की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- लेनदारों द्वारा वसूल किए जाने वाले हेअरकट की मात्रा के निर्धारण के लिए वैश्विक मानकों के अनुरूप मानदंड विकसित किए जाने चाहिए।
स्रोत – द हिन्दू