दिवाला और दिवालियापन संहिता संशोधन अध्यादेश 2021
दिवाला और दिवालियापन संहिता संशोधन अध्यादेश 2021
हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने दिवाला और दिवालियापन संहिता संशोधन अध्यादेश, 2021 को लागू किया है ।
यह अध्यादेश सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs)के लिए प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रक्रिया की अनुमति देगा।
क्या है प्री-पैकेज्ड इन्सॉल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोसेस?
- प्री-पैक का आशय एक सार्वजनिक बोली प्रक्रिया के बजाय सुरक्षित लेनदारों और निवेशकों के बीच एक समझौते के माध्यम से तनावग्रस्त कंपनी के ऋण के समाधान से है।
- पिछले एक दशक में ब्रिटेन और यूरोप में इन्सॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन (दिवालियापन समाधान ) हेतु यह व्यवस्था काफी लोकप्रिय हुई है।
- भारत के मामले में ऐसी प्रणाली के तहत वित्तीय लेनदारों को संभावित निवेशकों से सहमत होना अनिवार्य होगा और समाधान योजना हेतु नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की मंज़ूरी लेनी भी आवश्यक होगी।
अध्यादेश के बारे में:
- इस संशोधन के तहत दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016में एक नया अध्याय IIIA डाला गया है जो पूर्व-पैक इनसॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रक्रिया से संबंधित है। यह अध्यादेश MSME विकास अधिनियम, 2006 के तहत MSMEs के रूप में वर्गीकृत कॉर्पोरेट व्यक्तियों के लिए एक प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रक्रिया पेश करता है।
- इसके अलावा अध्यादेश ने दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016में संशोधन किया है और केंद्र सरकार को 1 करोड़ रुपये से अधिक की चूक के लिए इस तरह की पूर्व पैकेज्ड प्रक्रिया को अधिसूचित करने की अनुमति देता है।
अध्यादेश का मुख्य उद्देश्य क्या है?
इस अध्यादेश का उद्देश्य MSMEs के रूप में वर्गीकृत कॉर्पोरेट के लिए एक कुशल वैकल्पिक इनसॉल्वेंसी रिज़ॉल्यूशन प्रक्रिया प्रदान करना है।
अध्यादेश से कॉरपोरेट्स को क्या फायदा होगा?
यह अध्यादेश कॉर्पोरेट देनदार को रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल को “बेस रिज़ॉल्यूशन प्लान” प्रस्तुत करने की अनुमति देता है। हालांकि, देनदार के पास PIRP आरंभ करने के लिए लेनदारों से संपर्क करने से पहले योजना तैयार होनी चाहिए। यदि लेनदारों की समिति ने योजना को मंजूरी नहीं दी है, तो रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल विभिन्न योजनाओं को प्रस्तुत करने के लिए आवेदकों को आमंत्रित करेगा।
प्री-पैकेज्ड इन्सॉल्वेंसी रिजोल्यूशन प्रोसेस (PIRP)और सामान्य इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) प्रक्रिया में क्या अंतर है?
- PIRP केवल MSMEs पर लागू होता है।दूसरी ओर, IBC सभी कॉर्पोरेट देनदारों पर लागू होता है।
- PIRP की डिफ़ॉल्ट सीमा 1 करोड़ रुपये है।IBC की सीमा 1 करोड़ रुपये से अधिक है।
- PIRP एक प्रस्ताव योजना प्रस्तुत करने के लिए 90 दिनों की समयावधि प्रदान करता है। दूसरी ओर, IBC 180 दिन प्रदान करता है।
स्रोत –द हिन्दू
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