हाल ही में उच्चतम न्यायालय (SC) ने दहेज हत्या के आधारों को स्पष्ट किया है
दहेज हत्या की व्याख्या करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि वैवाहिक घर में मृत्यु से पहले वधु को मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है, तो उक्त मामले को दहेज मृत्यु के रूप में माना जा सकता है।
दहेज हत्या के बारे में
- दहेज मृत्यु (कानून में हत्या शब्द प्रयोग नहीं किया गया है) को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304B में परिभाषित किया गया है। दहेज़ मृत्यु के मामले में इस धारा को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113B (दहेज मृत्यु के बारे में उपधारणा) के साथ पढ़ा जाता है।
- उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय के अनुसार, उसकीमृत्यु से ठीक पहले का अर्थ है कि मृत्यु का समय निकट होने के दौरान अभियुक्त द्वारा की गई क्रूरता को सिद्ध करना होगा। साथ ही, यह क्रूरता अभियुक्त की ओर से निरंतर रूप से की जानी चाहिए, जिससे पीड़िता का जीवन दयनीय हो जाए, जो अंततः उसे आत्महत्या करने केलिए विवश कर दे।
भारत में दहेज मृत्यु के बारे में
- डाउरी (Dowry), जिसे दहेज (उत्तर भारत) या स्त्रीधनम (दक्षिण भारत) के रूप में भी जाना जाता है, को 1961 के दहेज प्रतिषेध अधिनियम द्वारा परिभाषित किया गया है
- विवाह के संबंध में एक पक्ष/माता-पिता द्वारा दूसरे पक्षको प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दी गई या देने के लिए सहमत कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति दहेज कहलाएगी।
- दहेज़ हत्या दीर्घकाल से चली आ रही एक व्यापक सामाजिक बुराई है। इसे भारतीय दंड संहिता में वर्ष 1986 में एक नए अपराध के रूप में जोड़ा गया था।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट “भारत में अपराध- वर्ष 2020” के अनुसार, वर्ष 2020 में संपूर्ण भारत में दहेज हत्या के 6,966 मामले दर्ज किए गए थे। साथ ही, इससे जुड़े लगभग 10,366 मामले दर्ज किए गए थे।
- दहेज हत्या के अतिरिक्त, क्रूरता (किसी महिला का उत्पीड़न या यातना) और घरेलू हिंसा अन्य सामान्य प्रकार के दहेज संबंधी अपराध हैं।
स्रोत – द हिन्दू