दस वर्षों में 186 हाथी रेल की पटरियों पर मृत : रिपोर्ट
हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2009-10 से 2020-21 के बीच सम्पूर्ण भारत में ट्रेनों की चपेट में आने से कुल 186 हाथियों की मौत हो गई है।
इसमें सर्वाधिक मृत हाथी (62) असम की रेल पटरियों पर मरे, इसके बाद पश्चिम बंगाल में (57), और ओडिशा में (27) हाथी अब तक मर चुके हैं ।
सरकार द्वारा इनकी रक्षा हेतु उपाय
- रेल दुर्घटनाओं से हाथियों की मृत्यु को रोकने के लिए रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड), और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के बीच एक स्थायी समन्वय समिति का गठन किया गया है ।
- इसके अतरिक्त रेलवे चालकों को दिखाई देने के लिए, रेलवे पटरियों के किनारे लगे पेड़-पौधों की सफाई करना। एवं हाथियों की उपस्थिति के बारे में सचेत करने हेतु, उपयुक्त स्थानों पर चेतावनी संकेतक बोर्डों का उपयोग भी सुनिश्चित किया गया है ।
- रेलवे पटरियों के ऊपर उठे हुए भागों (elevated sections) के ढलान को मध्यम करना। हाथियों के सुरक्षित आवागमन के लिए अंडर-पास/ओवर-पास का निर्माण करना, हाथियों के आवगमन वाले संवेदनशील हिस्सों में, सूर्यास्त से सूर्योदय तक ट्रेन की गति का नियमन करना। वन विभाग के अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों और वन्यजीव पर्यवेक्षकों द्वारा रेलवे पटरियों के संवेदनशील हिस्सों की नियमित गश्त करना।
समाधान के रूप में पारिस्थितिकी-पुल (Eco-Bridge):
- ‘इको-ब्रिज’, ऐसे वन्यजीव गलियारे हैं, जिन्हें समान वन्यजीव आवासों के दो बड़े क्षेत्रों को परस्पर जोड़ने वाले वन्यजीव क्रॉसिंग के रूप में भी जाना जाता है। इकोब्रिज का उद्देश्य, वन्यजीव कनेक्टिविटी को बढ़ाना है। ‘इको-ब्रिज’ वन्यजीव आवासों के मध्य एक कड़ी की भांति होते हैं।
- पारिस्थितिकी-पुल, मानव गतिविधियों या संरचनाओं जैसे सड़कों और राजमार्गों, अन्य बुनियादी ढांचे के विकास, और खेती आदि की वजह से अलग-अलग रहने वाली वन्यजीव आबादी को आपस में जोड़ते हैं।
- इको-ब्रिज, स्थानीय वनस्पतियों से निर्मित होते हैं अर्थात, इसे भू-दृश्यों को एक साथ लगा हुआ दिखने के लिए स्थानीय पेड़-पौधों से तैयार किया जाता है।
स्रोत – द हिन्दू