दल-बदल विरोधी कानून

दल-बदल विरोधी कानून

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अयोग्यता का सामना कर रहे विधायक शक्ति परीक्षण (Floor test) में शामिल नहीं हो सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र से संबंधित दल-बदल विरोधी मामले की सुनवाई करते हुए विधायकों की अयोग्यता पर अपना निर्णय सुनाया है।

निर्णय के मुख्य निष्कर्ष

  • शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि ‘दल-बदल विरोधी कानून’ के तहत अयोग्यता का सामना कर रहे संसद सदस्य या विधान सभा सदस्य को शक्ति परीक्षण में भाग लेने की अनुमति देना एक संविधान विरुद्ध कार्य को वैधानिक बनाने जैसा होगा ।
  • सदन के निर्वाचित सदस्य सदन में व्हिप के निर्देशों से बंधे होते हैं । अतः व्हिप के निर्देशों की अवहेलना करने वाली कार्रवाइयां अयोग्यता का कारण बनेंगी।
  • दलबदल रोधी कानून उन विधायकों को अयोग्य ठहराने का प्रावधान करता है, जो किसी राजनीतिक दल के टिकट पर चुने जाने के बाद, स्वेच्छा से उस दल की सदस्यता छोड़ देते हैं ।

अयोग्यता के आधार

  • यदि कोई सदस्य सदन में अपने राजनीतिक दल द्वारा जारी किसी निर्देश के विपरीत और दल की पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना मतदान करता या मतदान से अनुपस्थित रहता है और इस तरह के कृत्य को उस दल द्वारा 15 दिनों के भीतर माफ नहीं किया जाता है, तब उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।
  • यदि मनोनीत सदस्य मनोनयन के 6 महीने की समाप्ति के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है । तब उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।
  • यदि निर्दलीय सदस्य, किसी राजनीतिक दल में शामिल जाता है, तब उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।
  • निर्णायक प्राधिकारी: सदन के पीठासीन अधिकारी दल-बदल से उत्पन्न होने वाली अयोग्यता के संबंध में किसी भी प्रश्न का निर्णय करेंगे।
  • किहोतो होलोहन मामले में निर्णय दिया गया था कि पीठासीन अधिकारी का फैसला न्यायिक समीक्षा के अधीन होगा।
  • व्हिप एक लिखित अध्यादेश होता है। यह सदन में किसी महत्वपूर्ण विषय पर मतदान से पहले दल के सदस्यों को राज्य विधान सभा या संसद में उपस्थित होना अनिवार्य करता है ।
  • भारत को व्हिप की अवधारणा ब्रिटिश संसदीय प्रणाली से विरासत में मिली है। व्हिप तीन प्रकार के होते हैं- वन लाइन व्हिप ,टू लाइन व्हिप और थ्री लाइन व्हिप |

दलबदल विरोधी कानून

  • दल-बदल विरोधी कानून संसद/विधानसभा सदस्यों को एक पार्टी से दूसरी पार्टी में शामिल होने पर दंडित करता है।
  • संसद ने इसे 1985 में दसवीं अनुसूची के रूप में संविधान में जोड़ा। इसका उद्देश्य दल बदलने वाले विधायकों को हतोत्साहित कर सरकारों में स्थिरता लाना था।
  • दसवीं अनुसूची जिसे दलबदल विरोधी अधिनियम के रूप में जाना जाता है, को 52वें संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था और यह किसी अन्य राजनीतिक दल में दलबदल के आधार पर निर्वाचित सदस्यों की अयोग्यता के लिये प्रावधान निर्धारित करता है।

स्रोत – द हिन्दू

Download Our App

More Current Affairs

Share with Your Friends

Join Our Whatsapp Group For Daily, Weekly, Monthly Current Affairs Compilations

Related Articles

Youth Destination Facilities

Enroll Now For UPSC Course