महाराष्ट्र संकट: दलबदल रोधी कानून

Share with Your Friends

महाराष्ट्र संकट: दलबदल रोधी कानून

हाल ही में महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट ने निर्वाचित विधायकों के दल बदलने से जुड़े कानूनी पहलू पर वाद-विवाद को फिर से शुरु कर दिया है।

दलबदल रोधी कानून उन विधायकों को अयोग्य ठहराने का प्रावधान करता है, जो किसी राजनीतिक दल के टिकट पर चुने जाने के बाद, स्वेच्छा से उस दल की सदस्यता छोड़ देते हैं।

इसे 52वें संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से 10वीं अनुसूची में शामिल किया गया था।

दलबदल से उत्पन्न होने वाली अयोग्यता के संबंध में किसी भी प्रश्न का निर्णय सदन का पीठासीन अधिकारी करता है।

अयोग्यता के आधारः निम्नलिखित आधार पर सदस्यता समाप्त हो जाती है-

  • यदि कोई सदस्य सदन में अपने राजनीतिक दल द्वारा जारी किसी निर्देश के विपरीत और दल की पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना मतदान करता है, या मतदान से अनुपस्थित रहता है और इस तरह के कृत्य को उस दल द्वारा 15 दिनों के भीतर माफ नहीं किया जाता है।
  • यदि मनोनीत सदस्य 6 महीने की समाप्ति के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।
  • यदि निर्दलीय सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।

दलबदल कानून के अपवाद

  • दलबदल कानून किसी राजनीतिक दल को किसी अन्य दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति देता है बशर्ते कि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों।
  • यदि कोई व्यक्ति लोक सभा अध्यक्ष या राज्य सभा के सभापति के रूप में चुना जाता है, तो वह अपने दल से इस्तीफा दे सकता है। पद छोड़ने के बाद वह फिर से उस दल में शामिल हो सकता है।

अन्य संबंधित जानकारी

  • गुजरात राज्य बनाम न्यायमूर्ति आर.ए. मेहता (सेवानिवृत्त) मामला, 2013: उच्चतम न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय दिया था कि यह राज्यपाल पर निर्भर है कि वह विधानसभा को भंग करने के लिए मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद (CoM) की सलाह को स्वीकार करे या न करे।
  • संविधान के अनुच्छेद-163 में कहा गया है कि, राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करेगा। लेकिन उन मामलों में नहीं, जहां संविधान उसे अपने विवेक से निर्णय लेने का अधिकार देता है।

स्रोत -द हिन्दू

महाराष्ट्र संकट: दलबदल रोधी कानून

हाल ही में महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट ने निर्वाचित विधायकों के दल बदलने से जुड़े कानूनी पहलू पर वाद-विवाद को फिर से शुरु कर दिया है।

दलबदल रोधी कानून उन विधायकों को अयोग्य ठहराने का प्रावधान करता है, जो किसी राजनीतिक दल के टिकट पर चुने जाने के बाद, स्वेच्छा से उस दल की सदस्यता छोड़ देते हैं।

इसे 52वें संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से 10वीं अनुसूची में शामिल किया गया था।

दलबदल से उत्पन्न होने वाली अयोग्यता के संबंध में किसी भी प्रश्न का निर्णय सदन का पीठासीन अधिकारी करता है।

अयोग्यता के आधारः निम्नलिखित आधार पर सदस्यता समाप्त हो जाती है-

  • यदि कोई सदस्य सदन में अपने राजनीतिक दल द्वारा जारी किसी निर्देश के विपरीत और दल की पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना मतदान करता है, या मतदान से अनुपस्थित रहता है और इस तरह के कृत्य को उस दल द्वारा 15 दिनों के भीतर माफ नहीं किया जाता है।
  • यदि मनोनीत सदस्य 6 महीने की समाप्ति के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।
  • यदि निर्दलीय सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।

दलबदल कानून के अपवाद

  • दलबदल कानून किसी राजनीतिक दल को किसी अन्य दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति देता है बशर्ते कि उसके कम से कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों।
  • यदि कोई व्यक्ति लोक सभा अध्यक्ष या राज्य सभा के सभापति के रूप में चुना जाता है, तो वह अपने दल से इस्तीफा दे सकता है। पद छोड़ने के बाद वह फिर से उस दल में शामिल हो सकता है।

अन्य संबंधित जानकारी

  • गुजरात राज्य बनाम न्यायमूर्ति आर.ए. मेहता (सेवानिवृत्त) मामला, 2013: उच्चतम न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय दिया था कि यह राज्यपाल पर निर्भर है कि वह विधानसभा को भंग करने के लिए मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद (CoM) की सलाह को स्वीकार करे या न करे।
  • संविधान के अनुच्छेद-163 में कहा गया है कि, राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करेगा। लेकिन उन मामलों में नहीं, जहां संविधान उसे अपने विवेक से निर्णय लेने का अधिकार देता है।

स्रोत -द हिन्दू

Download Our App

MORE CURRENT AFFAIRS

Join Our Whatsapp Group For Daily, Weekly, Monthly Current Affairs Compilations

UPSC IAS Best Online Classes & Course At Very Affordable price

Register now

Youth Destination Icon