तीसरी आर्कटिक विज्ञान मंत्रीस्तरीय बैठक संपन्न

तीसरी आर्कटिक विज्ञान मंत्रीस्तरीय बैठक संपन्न

हाल ही में तीसरी आर्कटिक विज्ञान मंत्रीस्तरीय बैठक (Arctic Science Ministerial Meeting) संपन्न हुई, जिसमें भारत ने भाग लिया है । इसकी जानकारी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने दी, और बताया कि इस बैठक का प्रतिनिधित्व केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने किया है।

मुख्य तथ्य:

  • इस बैठक के दौरान भारत ने आर्कटिक में अनुसंधान और दीर्घकालिक सहयोग के लिए अपनी योजनाएं साझा की। साथ ही भारत ने निरंतर आर्कटिक अवलोकन नेटवर्क (Sustained Arctic Observational Network) में अपना योगदान जारी रखने का वादा किया।
  • भारत ने यह भी घोषणा की कि, वह ऊपरी आर्कटिक महासागर और समुद्री मौसम विज्ञान मानकों की लंबी अवधि की निगरानी के लिए आर्कटिक में मूरिंग तैनात करेगा। मूरिंग एक तार से जुड़े उपकरणों का संग्रह है, और जिन्हें समुद्र तल तक एंकर (लंगर) किया जाता है।
  • इस बैठक में भारत ने अगले या भविष्य में आयोजित होने वाली आर्कटिक विज्ञान मंत्रीस्तरीय बैठक की मेजबानी करने का प्रस्ताव रखा है ।

आर्कटिक विज्ञान मंत्रीस्तरीय बैठक (Arctic Science Ministerial Meeting)

  • पहली आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन अमेरिका में वर्ष 2016 में हुआ था| इसके 2 वर्ष पश्चात् वर्ष 2018 में जर्मनी में दूसरी आर्कटिक विज्ञान मंत्रीस्तरीय बैठक आयोजित की गई थी।
  • आर्कटिक विज्ञान मंत्रीस्तरीय बैठक (2021) एशिया में आयोजित होने वाली पहली बैठक है। यह जापान और आइसलैंड द्वारा आयोजित की गई थी इसका उद्देश्य विभिन्न हितधारकों जैसे सरकारों, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं को आर्कटिक क्षेत्र की बेहतर समझ विकसित करने के लिए अवसर प्रदान करना है।
  • विदित हो कि भारत वर्ष 2013 से आर्कटिक परिषद में एक “पर्यवेक्षक” देश रहा है।

स्वालबार्ड संधि (Svalbard Treaty)

  • भारत की आर्कटिक क्षेत्र में उपस्थिति 1920 में हुई पेरिस की स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर के साथ प्रारंभ हुई। वर्ष 2008 में भारत ने आर्कटिक क्षेत्र में एक स्थायी अनुसंधान स्टेशन का विकसित किया, जिसे हिमाद्री कहा जाता है। हिमाद्री नॉर्वे के न्यालेसुंड में स्थित है।
  • भारत ने 2014 में कांग्सजोर्डन (Kongfjiorden) में इंडआर्क (IndARC) नामक एक पहले मल्टी सेंसर पर्यवेक्षक की तैनाती की। राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR) आर्कटिक क्षेत्र में अनुसंधान का समन्वय और संचालन करता है। यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत आता है।

नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR)

  • नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) को यूएसए के सहयोग से चलाया जा रहा है, जो एक उपग्रह मिशन है। इसका लक्ष्य रडार इमेजिंग का उपयोग करके भूमि की सतह के परिवर्तनों का वैश्विक मापन करना है। यह परियोजना वर्तमान में चालू है।

भारत की आर्कटिक नीति (India’s Arctic Policy)

हाल ही में जारी मसौदा आर्कटिक नीति दस्तावेज भारत की नीति के पांच स्तंभों की रूपरेखा तैयार करता है। वे इस प्रकार हैं:

  1. मानव संसाधन क्षमताओं का विकास
  2. वैश्विक शासन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
  3. अर्थशास्त्र और मानव विकास
  4. वैज्ञानिक अनुसंधान
  5. कनेक्टिविटी

स्रोत – द हिन्दू

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