गुजरात के कलोल में स्थापित होगा देश का पहला तरल नैनो यूरिया संयंत्र
हाल ही में प्रधान मंत्री ने कलोल (गुजरात) में देश के पहले तरल नैनो यूरिया संयंत्र का उद्घाटन किया है। तरल नैनो यूरिया पेटेंटकृत रासायनिक नाइट्रोजन उर्वरक है।
इसका विकास IFFCO के कलोल स्थित नैनो जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र ने किया है। यह उर्वरक नैनो नाइट्रोजन कणों 20-50 नैनोमीटर से निर्मित है।
यह विश्व का पहला नैनो यूरिया (तरल) संयंत्र है। एक नैनोमीटर एक मीटर के अरबवें हिस्से के बराबर होता है।
यह सीधे पौधों की पत्तियों पर छिड़का जाता है। इसे पत्तियों के एपिडर्मिस (बाह्यपरत) पर पाए जाने वाले रंध्र-छिद्र (स्टोमेटा) अवशोषित कर लेते हैं।
नैनो यूरिया के लाभ
- पारंपरिक यूरिया की 25% दक्षता की तुलना में नैनो यूरिया की दक्षता 85-90% तक है। इससे यूरिया की कम खपत होगी। साथ ही, कृषि उपज में भी सुधार होगा।
- यूरिया आयात में कमी आएगी।
- सरकारी सब्सिडी व लॉजिस्टिक लागत में कमी आएगी।
- यूरिया से होने वाले मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण में कमी होगी।
- इसके अलावा. भमिगत जल की गणवत्ता में सवार होगा और ग्लोबल वार्मिंग में कमी करने में मदद मिलेगी।
- नमी के संपर्क में आने पर घनीभूत (caking) होने की कोई समस्या नहीं होने के कारण इसकी शेल्फ लाइफ अधिक होगी।
कृषि में नैनो प्रौद्योगिकी के अन्य संभावित उपयोग
- शाकनाशियों, कीटनाशकों और अन्य उर्वरकों के नैनोफॉर्म्युलेशन का उपयोग किया जा सकता है।
- कृषि-रसायन के अवशेषों और रोगों की पहचान करने के लिए नैनोसेंसर का उपयोग किया जा सकता है। उत्पादकता, पोषण मूल्य या शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए पौधों की आनुवंशिकी में सुधार में उपयोग किया जा सकता है।
स्रोत –द हिन्दू