संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) द्वारा “ड्राउट इन नंबर्स (Drought in Numbers) 2022” रिपोर्ट जारी
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD) के पक्षकारों के 15 वें सम्मेलन (COP-15) में ‘ड्राउट इन नंबर्स (Drought in Numbers) 2022’ रिपोर्ट जारी की गई है।
इस रिपोर्ट में विश्व के 196 देशों में जीवन और आजीविका पर सूखे एवं इसके प्रभावों का विश्लेषण किया गया है। साथ ही, इस आकलन के भाग के रूप में एक ‘वैश्विक सूखा सुभेद्यता सूचकांक’ (Global Drought Vulnerability Index) भी जारी किया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष–
- वर्ष 2000 के बाद से, सूखे की संख्या और अवधि में 29% की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 1970 से 2019 तक मौसम, जलवायु और जल संबंधी खतरे 50% आपदाओं तथा|
- आपदाओं से होने वाली 45% मौतों के लिए उत्तरदायी रहे हैं।
- प्राकृतिक आपदाओं में सूखे की भागीदारी केवल 15% है। लेकिन, वर्ष 1970 से 2019 के दौरान इसके कारण सर्वाधिक लोगों की मौत हुई है।
- वर्ष 1998 से 2017 तक सूखे के कारण विश्व को लगभग 124 अरब अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है।
- वर्ष 2022 में, 2.3 अरब से अधिक लोग जल संबंधी संकट का सामना कर रहे हैं।
रिपोर्ट में भारत के लिए निष्कर्ष
- वर्ष 2020-2022 के दौरान देश का लगभग दो-तिहाई भाग सूखे से प्रभावित रहा है।
- भौगोलिक रूप से, भारत की सूखे से संबंधित सुभेद्यता की तुलना उप-सहारा अफ्रीका की सूखे से संबंधित सुभेद्यता से की गयी है।
- गंभीर सूखे के कारण वर्ष 1998 से 2017 के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2 से 5 प्रतिशत तक की कमी हुई है।
- भारत का 68% से अधिक क्षेत्र सूखे के प्रति सुभेद्य है। इसके अतिरिक्त, नीति आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अपर्याप्त जल और अपर्याप्त स्वच्छता के कारण भारत में प्रतिवर्ष लगभग दो लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
भारत में सूखे को कम करने के लिए किए गए उपाय–
- वर्षा सिंचित/निम्नीकृत क्षेत्रों और बंजर भूमि के विकास के लिए एकीकृत जलसंभर प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP) को आरंभ किया गया है।
- राष्ट्रीय जल नीति 2012 के तहत बाढ़ और सूखा जैसी आपदाओं से निपटने के लिए | तैयारियों पर जोर दिया गया है।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने भारत का मरुस्थलीकरण और भू-निम्नीकरण एटलस जारी किया है।
- जल जीवन मिशन का उद्देश्य पर्याप्त मात्रा में और निर्धारित गुणवत्ता वाले पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
स्रोत –द हिन्दू