डोकरा धातु शिल्प
हाल ही में पश्चिम बंगाल का लालबाज़ार कला का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है, जिसकी वजह एक लोकप्रिय धातु शिल्प, डोकरा है।
डोकरा कला के बारे में
- डोकरा झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्यों में रहने वाले ओझा धातुकर्मियों द्वारा प्रचलित बेल धातु शिल्प का एक रूप है।
- हालाँकि इस कारीगर समुदाय की शैली और कारीगरी भी अलग-अलग राज्यों में भिन्न है।
- ढोकरा या डोकरा को बेल मेटल क्राफ्ट के रूप में भी जाना जाता है।
- ढोकरा नाम ढोकरा डामर जनजातियों से लिया गया है, जो पश्चिम बंगाल के पारंपरिक धातुकर्मी हैं।
- यह पश्चिम बंगाल में लुप्त मोम विधि का उपयोग करके निर्मित की जाने वाली मूर्तिकला का एक रूप है। इसका प्रलेखित इतिहास लगभग 5,000 वर्ष पुराना है।
- मोहनजोदड़ो (हड़प्पा सभ्यता) की नृत्यांगना सबसे पुरानी ढोकरा कलाकृतियों में से एक है जिसे अब जाना जाता है।
- आदिम सादगी एवं मोहक लोकला रूपांकनों के कारण ढोकरा उत्पादों की घरेलू व विदेशी बाजारों में अत्यधिक मांग हैं।
- ढोकरा उत्पादों में प्रमुख रूप से घोड़े, हाथी, मोर, उल्लू, धार्मिक चित्र, मापन कटोरे, दीप मंजूषा आदि का निर्माण शामिल है।
- पश्चिम बंगाल के बांकुरा में बिकना एवं बर्धमान में दरियापुर इसके प्रमुख केंद्र थे। हालाँकि, वर्तमान में पश्चिम बंगाल का लाल बाज़ार इसके प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा है।
- वर्ष 2018 में पश्चिम बंगाल के डोकरा शिल्प को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication- GI) टैग के साथ प्रस्तुत किया गया था।
स्रोत – द हिन्दू