हाल ही में डिजिटल ऋण पर RBI कार्यकारी समूह ने डिजिटल ऋण को विनियमित करने के लिए कानून बनाने पर विचार किया है।
डिजिटल ऋण पर समूह ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप के माध्यम से ऋण देने सहित भारत में डिजिटल रूप से दिए जाने वाले ऋणों की निगरानी के लिए एक अलग कानून बनाने की सिफारिश की है।
अन्य प्रमुख सिफारिशों में शामिल हैं:
- डिजिटल माध्यम से ऋण देने वाली एजेंसियों की तकनीकी साख को सत्यापित करने के लिए एक नोडल एजेंसीऔर विनियामक संगठन की स्थापना करनी चाहिए।
- अविनियमित ऋण प्रदायगी गतिविधियों पर प्रतिबंध अधिनियम को लागू करके अवैध ऋण गतिविधियों कोरोकने के लिए कानून बनाना चाहिए।
- डिजिटल माध्यम से ऋण प्रदान करने के लिए, निर्धारित किये गए आधारभूत प्रौद्योगिकी मानकों का अनुपालनएक पूर्व शर्त होनी चाहिए।
- डेटा भारत में स्थित सर्वर में संग्रहित किया जाना चाहिए।
- प्रत्येक ऋणदाता द्वारा एक एंटी-प्रेडेटरी लेंडिंग नीति तैयार की जानी चाहिए। यह नीति RBI द्वारा परिभाषित की जाने वाली विशेषताओं के आधार पर होनी चाहिए।
- डिजिटल लेंडिंग ऐसे ऋणों को प्रस्तावित करने की प्रक्रिया है, जिनके लिए आवेदन, उनका संवितरण तथा प्रबंधन केवल डिजिटल माध्यम से ही किया जाता है। इसमें ऋणदाता डिजिटल डेटा का उपयोग ऋण संबंधी सूचित निर्णय लेने और बुद्धिमत्तापूर्ण ग्राहक संपर्क स्थापित करने के लिए करते हैं।
इस प्रणाली में तीन मुख्य अभिकर्ता होते हैं:
- RBI-विनियमित संस्थाएं, जैसे- बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs)
- अन्य विनियमित संस्थाएं तथा
- तृतीय-पक्ष सेवा प्रदाताओं सहित अविनियमित इकाइयां ।
डिजिटल ऋण से जुड़े विभिन्न मुद्दों में शामिल हैं
- अनधिकृत डिजिटल ऋणदाता।
- मोबाइल फोन पर डेटा तक पहुंचने के लिए समझौतों के दुरुपयोग के माध्यम से डेटा गोपनीयता का उल्लंघन करना।
- उच्च व्याज दरें और आक्रामक तरीके से ऋणों की वसूली।
स्रोत – द हिन्दू