ट्रांस – बाउंड्री कंजर्वेशन (TBC) सहयोग
बांग्लादेश और भारत को बंगाल टाइगर के संरक्षण के लिए सीमा-पारीय सहयोग की आवश्यकता है।
ट्रांस- बाउंड्री कंजर्वेशन (TBC) सहयोग की एक प्रक्रिया है। इसके तहत एक या एक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार संरक्षण लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है।
ट्रांस- बाउंड्री कंजर्वेशन क्षेत्र (TBCAs) तीन प्रकार के होते हैं –
- ट्रांस- बाउंड्री संरक्षित क्षेत्र (TPA) : वह भौगोलिक क्षेत्र होता है, जिसमें संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं।
- TBC भू–परिदृश्य और/या समुद्री परिदृश्य: यह पारिस्थितिक रूप से जुड़ा हुआ एक क्षेत्र होता है । यह पारिस्थितिक प्रक्रियाओं को बनाए रखता है। साथ ही एक या एक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार विस्तारित होता है ।
- सीमा-पारीय प्रवासन संरक्षण क्षेत्र: ये दो या दो से अधिक देशों में फैले हुए वन्यजीव पर्यावास होते हैं। ये प्रवासी प्रजातियों की पर्याप्त आबादी को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
भारत नेपाल और भूटान के साथ निम्नलिखित TBCAs को साझा करता है:
- कंचनजंगा संरक्षण क्षेत्र: भारत और तिब्बत की सीमा के पास नेपाल के पूर्वोत्तर भाग में स्थित है।
- तराई आर्क लैंडस्केप (TAL ): यह उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार तथा नेपाल की निचली पहाड़ियों में फैला हुआ है।
- पवित्र हिमालयी भू – परिदृश्य: इसका 74 प्रतिशत क्षेत्र नेपाल में 25 प्रतिशत सिक्किम में तथा शेष एक प्रतिशत भूटान में विस्तारित है ।
- सीमा-पारीय मानस संरक्षण क्षेत्र (IraMCA): यह पूर्वी हिमालय में स्थित है । पूर्वी हिमालय भूटान को पूर्वोत्तर भारत से जोड़ता है।
TBCAs के लाभ –
- प्रवासी प्रजातियों के अस्तित्व को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी ।
- बेहतर पारिस्थितिक अखंडता बनी रहेगी और प्रजातियों के दीर्घकालिक अस्तित्व में योगदान मिलेगा ।
- इनमें पर्याप्त सामाजिक- सांस्कृतिक और आर्थिक लाभ उत्पन्न करने की क्षमता है ।
- पर्यटन प्रबंधन पर सहयोग में वृद्धि होगी ।
स्रोत – बिजनेस स्टैण्डर्ड