हाल ही में नीति आयोग ने ज्ञान साझाकरण कार्यशाला आयोजित की और प्राकृतिक कृषि पर विशेष वेबसाइट लॉन्च की है ।
प्राकृतिक कृषि को रसायन मुक्त खेती और पशुधन आधारित खेती के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
इसे शून्य बजट प्राकृतिक खेती के रूप में भी जाना जाता है। यह एक विविधतापूर्ण कृषि प्रणाली है। यह फसलों, वृक्षों और पशुधन को एकीकृत करती है। इससे कार्यात्मक जैव विविधता का इष्टतम उपयोग होता है।
सुभाष पालेकर, जी. नम्मालवार और आचार्य देवव्रत प्राकृतिक कृषि के क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण योगदानकर्ता हैं।
प्राकृतिक कृषि किसानों की आय बढ़ाने पर केंद्रित है। यह कई अन्य लाभ भी प्रदान करती है, जैसे मृदा की उर्वरता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की बहाली तथा ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी।
इसे केंद्र प्रायोजित योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत ‘भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (BPKP) के रूप में प्रचारित किया जाता है।
BPKP का उद्देश्य पारंपरिक स्वदेशी प्रथाओं/परंपराओं को बढ़ावा देना है, जो बड़े पैमाने पर मल्चिंग तथा गाय के गोबर और मूत्र के संयोजन के उपयोग पर बल देने के साथ-साथ कृषि भूमि पर ही बायोमास पुनर्चक्रण पर आधारित हैं।
यह सभी प्रकार के सिंथेटिक रासायनिक इनपुट के प्रयोग को प्रतिबंधित करती है।
कई अध्ययनों ने उत्पादन में वृद्धि, संधारणीयता, जल की बचत, मृदा स्वास्थ्य और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के संदर्भ में प्राकृतिक कृषि-BPKP की प्रभावशीलता की पुष्टि की है।
स्रोत – द हिंदू