जोशीमठ में भू–धंसाव
हाल ही में जोशीमठ में भू-धंसाव कि स्थिति उत्पन्न हो गई गई है। जोशीमठ में भू-धंसाव के लिए मानव जनित कारकों के साथ-साथ भू-वैज्ञानिक कारक भी जिम्मेदार हैं
- जोशीमठ, उत्तराखंड के चमोली जिले में लगभग 6000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जाने के लिए मुख्य पारगमन मार्ग है।
- यह पश्चिम में कर्मनाशा और पूर्व में ढकनाला नदियों से घिरा हुआ है। जोशीमठ के दक्षिण में धौलीगंगा और उत्तर में अलकनंदा नदियां बहती हैं।
- जोशीमठ में भू-धंसाव ( Subsidence) का पहला मामला वर्ष 1976 में मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में दर्ज किया गया था।
भू–धंसाव (subsidence) के लिए उत्तरदायी भू–वैज्ञानिक कारक
- जोशीमठ लगभग वैकृता थर्स्ट (VT) पर स्थित है। यह एक विवर्तनिक भ्रंश रेखा है। साथ ही, यह स्थान मुख्य भूगर्भिक भ्रंश रेखा, मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) और पांडुकेश्वर थ्रस्ट (PT) के भी बहुत निकट है।
- यह भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र के ‘जोन – V’ में आता है।
- इसके आस-पास का क्षेत्र अत्यधिक भार वाली सामग्री की पतली परत से ढका हुआ है। इसके कारण इस स्थान पर भू-धंसाव का अधिक खतरा बना रहता है।
- उच्च हिमपात और अत्यधिक अपक्षयित नीस (gneissic) चट्टानें इस क्षेत्र को भूस्खलन के प्रति संवेदनशील बनाती हैं।
- अत्यधिक वर्षा, इसकी ढलान की स्थिरता को प्रभावित करती है ।
मानव जनित कारकः
- अनियोजित निर्माण और अव्यवस्थित जल निकासी प्रणाली ।
- विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना सहित जोशीमठ और तपोवन के आसपास की अन्यन जलविद्युत परियोजनाओं ने कमजोर ढलान पर अतिरिक्त दबाव बनाया है।
- सतह से जल के भू- रिसाव में वृद्धि, भू-धंसाव का एक संभावित कारण है।
स्रोत – द हिन्दू