जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित
हाल ही में लोकसभा ने 25 जुलाई को जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 (Biological Diversity (Amendment) Bill, 2021) पारित किया है । इस उद्देश्य जैविक विविधता अधिनियम, 2002 में संशोधन करना है।
विधेयक के उद्देश्य
यह सुनिश्चित करना कि जनजातियों और कमजोर समुदायों को औषधीय वन उत्पादों की आय से लाभ हो।
संशोधित विधेयक का मसौदा पारंपरिक भारतीय चिकित्सा प्रैक्टिशनर, सीड सेक्टर, उद्योग जगत और शोधकर्ताओं की चिंताओं को दूर करने के लिए तैयार किया गया है।
इनकी चिंता रही है कि जैविक विविधता अधिनियम के नियमों के पालन के क्रम में उनकी गतिविधियां प्रभावित होती है।
इसकी वजह से सहयोगात्मक अनुसंधान और निवेश करना और पेटेंट आवेदन प्रक्रियाओं को कठिन बना दिया है।
जैविक विविधता (संशोधन) विधेयक, 2021 के तहत पंजीकृत आयुष चिकित्सा चिकित्सकों को जैविक संसाधन प्राप्त करने से पहले जैव विविधता बोर्डों को सूचित करने से छूट दिया गया है।
इसका उद्देश्य अनुपालन बोझ को कम करना, निवेश को बढ़ावा देना और पेटेंट आवेदन प्रक्रियाओं को सरल बनाना भी है।
विधेयक में पंजीकृत आयुष चिकित्सा चिकित्सकों और संहिताबद्ध पारंपरिक ज्ञान तक पहुंच रखने वाले लोगों को कुछ उद्देश्यों के लिए जैविक संसाधनों तक पहुंच के लिए राज्य जैव विविधता बोर्डों को पूर्व सूचना देने से छूट देने की मांग की गई है।
यह अधिनियम कई प्रकार की गतिविधियों को अपराध की श्रेणी से हटाता है और उनके स्थान पर मौद्रिक दंड का प्रावधान करता है।
यह सरकारी अधिकारियों को पूछताछ करने और दंड निर्धारित करने का अधिकार देता है।
जैविक विविधता अधिनियम, 2002
जैविक विविधता अधिनियम, 2002 को संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (CBD), 1992 को प्रभावी बनाने के लिए तैयार किया गया था ।
यह जैविक संसाधनों और संबंधित पारंपरिक ज्ञान के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के सतत, निष्पक्ष और न्यायसंगत रूप में साझा करने के लिए प्रयास करता है।
अधिनियम के तहत कोई भी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती है।
इस अधिनियम में जैविक संसाधनों तक पहुंच को विनियमित करने के लिए तीन स्तरीय संरचना की परिकल्पना की गई थी:
राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए)
इसे भारत के जैविक विविधता अधिनियम (2002) को लागू करने के लिए 2003 में स्थापित किया गया था ।
यह एक वैधानिक निकाय है,जिसका मुख्यालय तमिलनाडु में है ।
यह केंद्र सरकार को जैव विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के सतत उपयोग और जैविक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के न्यायसंगत बंटवारे से संबंधित मामलों पर सलाह देता है।
राज्य जैव विविधता बोर्ड (एसबीबी)
राज्य जैव विविधता बोर्ड (State Biodiversity Board- SBB) की स्थापना राज्य सरकारों द्वारा अधिनियम की धारा 22 के अनुसार की जाती है।
संरक्षण, धारणीय उपयोग या समान लाभ साझा करने से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार द्वारा जारी किसी भी दिशा-निर्देश के अधीन राज्य सरकारों को परामर्श देना।
अन्य व्यावसायिक उपयोग अथवा जैव-सर्वेक्षण एवं लोगों द्वारा किसी भी जैव संसाधन के जैविक उपयोग हेतु अनुरोधों को अनुमोदन के माध्यम से विनियमित करना।
जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (बीएमसी)
अधिनियम की धारा 41 के अनुसार, प्रत्येक स्थानीय निकाय अपने क्षेत्र के भीतर जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (BMC) का गठन करेगा जिसका उद्देश्य जैव विविधता के संरक्षण, धारणीय उपयोग एवं प्रलेखन को बढ़ावा देना है।
अधिनियम के अनुसार, स्थानीय निकाय जैविक विविधता के संरक्षण, टिकाऊ उपयोग और दस्तावेज़ीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर बीएमसी का गठन करते हैं ।
इसका कार्य आवासों का संरक्षण.भूमि प्रजातियों, लोक किस्मों और किस्मों, पालतू जानवरों और सूक्ष्मजीवों की नस्लों का संरक्षण।
जैविक विविधता से संबंधित ज्ञान का क्रोनिकलिंग।
विधेयक को लेकर क्या चिंताएं जताई गई हैं?
पर्यावरण संगठनों ने इस संशोधन से “बायो- पायरेसी” की आशंका के बारे में चिंता जताई है। उनका कहना है कि ये संशोधन उद्योग के पक्ष में किये गए हैं और स्थानीय समुदायों के साथ लाभ साझा करने पर स्पष्टता का अभाव है।
वन और पर्यावरण के लिए कानूनी पहल (LIFE) जैसे पर्यावरण संगठनों ने कहा है कि संशोधन “केवल लाभ” आयुष फर्मों के लिए किए गए थे और “जैव चोरी” का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
विधेयक अधिनियम के तहत कई प्रकार के अपराधों को अपराध की श्रेणी से हटाता है और उनके स्थान पर मौद्रिक दंड का प्रावधान करता है।
संशोधन विधेयक का विश्लेषण करने के लिए दिसंबर 2021 में गठित संयुक्त संसदीय समिति के एक सदस्य ने कहा कि ये छूट कानून के दुरुपयोग के लिए रास्ता खोल सकती हैं।
स्रोत – द हिन्दू