जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्याकन समिति (GEAC)

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्याकन समिति (GEAC)

हाल ही में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्याकन समिति (GEAC) द्वारा बीटी कॉटन से जुड़े नए इनपुट की मांग के कारण भारत में इसकी अगली पीढ़ी के प्रवेश में देरी हो रही है ।

  • कुछ राज्यों ने जेनेटिकली इंजीनियर्ड (GE) कॉटन हाइब्रिड्स के जैव सुरक्षा अनुसंधान परीक्षणों के लिए अनापत्ति प्रमाण-पत्र (NOC) जारी करने से इनकार कर दिया है । ये फील्ड ट्रायल्स तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात और हरियाणा में किए जाने हैं।
  • उल्लेखनीय है कि फील्ड ट्रायल करने के लिए राज्य सरकारों से NOC प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया गया है। कृषि राज्य सूची का विषय है। इसलिए, अनुपालन संबंधी निगरानी के लिए राज्यों की भागीदारी आवश्यक होती है।
  • GEAC पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्य करने वाली एक वैधानिक समिति है । इसका गठन पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत बनाए गए “खतरनाक सूक्ष्म जीवों या आनुवंशिक रूप से निर्मित जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग/आयात/ निर्यात और भंडारण नियमावली, 1989” के तहत किया गया है।
  • इसका मुख्य कार्य औद्योगिक उत्पादन में खतरनाक सूक्ष्मजीवों और पुनः संयोजकों के व्यापक उपयोग से जुड़ी गतिविधियों को मंजूरी देना है।
  • यह किसी भी आनुवंशिक रूप से तैयार किए गए जीव को पर्यावरण में प्रसारित / मुक्त किए जाने से पहले उसका प्रायोगिक फील्ड ट्रायल आयोजित करती है ।
  • बीटी (बैसिलस थुर्रिजिनिसिस) कॉटन कपास की एक संकर/किस्म है। इसमें ‘crylAc’ और ‘crylAb’ नामक जीन मौजूद होते हैं। ये जीन मृदा में पाए जाने वाले बैक्टीरियम बैसिलस थुरिंजिनिसिस (Bt ) से अलग किए जाते हैं, फिर विषाक्त प्रोटीन के रूप में उनकी कोडिंग की जाती है, ताकि ये बॉलवर्म कीड़ों को नष्ट कर सकें ।
  • बीटी कॉटन एकमात्र GM ( आनुवंशिक रूप से संशोधित) फसल है, जिसे व्यावसायिक खेती के लिए मंजूरी दी गई है।

स्रोत – बिजनेस स्टैण्डर्ड  

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