जुलाई में हो सकता है मानसून सत्र का प्रारंभ

जुलाई में हो सकता है मानसून सत्र का प्रारंभ

हाल ही में सरकार द्वारा एक वक्तव्य में कहा गया कि, इस वर्ष संसद का मानसून सत्र जुलाई में तय समय पर शुरू किये जाने की संभावना है।

ज्ञातव्य हो कि 25 मार्च को संसद के पिछले सत्र की अवधि को कम करते हुए, अनिश्चितकाल तक के लिए समाप्त कर दिया गया था।

हालाँकि संविधान के अनुसार , अगला सत्र 6 माह की अवधि के अन्दर आयोजित किया जाना अनिवार्य होता है और यह अवधि 14 सितंबर को समाप्त हो रही है।

पृष्ठभूमि:

  • पिछले वर्ष मार्च में आई कोविड महामारी के चलते, संसद के तीनों सत्रों की अवधि में कटौती की गई थी । इनमें प्रथम सत्र वर्ष 2020 का बजट सत्र था। वर्ष 2020 के शीतकालीन सत्र का समय भी कम किया गया था एवं जुलाई में शुरू होने वाला मानसून सत्र पिछले साल सितंबर में शुरू हुआ था।

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार, संसद के दो सत्रों के मध्य 6 महीने से अधिक समय का अंतराल नहीं होना चाहिए।
  • हालाँकि संविधान में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि संसद के सत्र कब- कब और कितने दिन के लिए आयोजित किये जाने चाहिए।
  • हालाँकि अनुच्छेद 85 के अनुसार राष्ट्रपति को यह शक्ति है कि वह समय-समय पर, संसद‌ के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत कर सकता है। इस तरह, सद के किसी सत्र को सरकार की सिफारिश पर आयोजित किया जा सकता हैऔर सरकार द्वारा ही सत्र की तारीख और अवधि तय की जाती है।

स्थगन (Adjournment)

  • संसद के स्थगन द्वारा बैठक को कुछ निश्चित समय, कुछ घंटे, दिन या सप्ताह तक के लिये निलंबित किया जा सकता है।

सत्रावसान (Prorogation):

  • संसद का सत्रावसान न केवल बैठक बल्कि सदन के सत्र को भी समाप्त करता है। सत्रावसान की कार्रवाई राष्ट्रपति के माध्यम से की जाती है। सत्रावसान और सत्र के फिर से प्रारंभ होने (Reassembly) तक के समय को सत्रावकाश कहा जाता है। सत्रावसान का आशय सत्र का समाप्त होना है, न कि विघटन ।
  • विदित हो कि ये नियम लोकसभा के मामले में हैं क्योंकि राज्यसभा भंग नहीं होती है।

कोरम (Quorum)

  • कोरम या गणपूर्ति सदस्यों की न्यूनतम संख्या है। कोरम की उपस्थिति पर सदन का कार्य संपादित किया जा सकता है। कोरम मुख्यतः प्रत्येक सदन में पीठासीन अधिकारी समेत कुल सदस्यों का 10वां भाग होता है। अर्थात् किसी कार्य को करने के लिये लोकसभा में कम-से-कम 55 सदस्य तथा राज्यसभा में कम-से-कम 25 सदस्यों होने आवश्यक है।

संसदीय सत्र का महत्व:

  • विधि-बनाने अर्थात क़ानून निर्माण के कार्य संसदीय सत्र के दौरान ही किए जाते हैं।
  • इसके अलावा, सरकार के कामकाज की गहन जांच और राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श केवल संसद के दोनों सदनों में जारी सत्र के दौरान ही किया जा सकता है।
  • एक अच्छी तरह से काम कर रहे लोकतंत्र के लिए संसदीय कार्य-पद्धति का पूर्वानुमान होना आवश्यक हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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