दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता पर जी.एन. बाजपेयी समिति की रिपोर्ट जारी
हाल ही में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code: IBC), 2016 पर जी.एन. बाजपेयी (GN Bajpayi) समिति की रिपोर्ट जारी की गई है ।
इस समिति ने IBC प्रक्रिया के लिए निम्नलिखित लक्ष्यों की पहचान की है-
- संकटग्रस्त परिसंपत्ति का समाधान,
- उद्यमिता को बढ़ावा देना,
- ऋण की उपलब्धता तथा
- हितधारकों के हितों को संतुलित करना।
प्रमुख सिफारिशें
- IBC की सफलता का आकलन करने और इसके कार्यान्वयन में सुधार के लिए एक मानकीकृत ढांचे का सुझाव दिया गया है।
- दिवाला प्रक्रिया के निष्पादन का आकलन करने के लिए विश्वसनीय रीयल-टाइम डेटा आवश्यक है।
- संहिता के मात्रात्मक और गैर-मात्रात्मक दोनों परिणामों का मापन एवं निगरानी की जानी चाहिए।
- संहिता द्वारा सूत्रपात किए गए गैर-मात्रात्मक परिणाम, जैसे- देनदारों और लेनदारों में व्यवहार परिवर्तन को अनुसंधान एवं मात्रात्मक प्रॉक्सी संकेतकों द्वारा पुष्टि किए जाने की आवश्यकता है।
- IBC एक कंपनी, एक सीमित देयता भागीदारी, एक स्वामित्व, या साझेदारी फर्म या एक व्यक्ति के तनाव के लिए समाधान प्रदान करता है।
इससे पहले संसदीय स्थायी समिति ने भी IBC को मजबूत करने के लिए कुछ सिफारिशें की थी जैसे:
- केवल IBC मामलों की सुनवाई के लिए विशेष राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिकरण (NCLT) पीठों की स्थापना करना,
- लेनदारों की समिति के लिए पेशेवर आचार संहिता का निर्माण करना,
- समाधान पेशेवरों की भूमिका को सुदृढ़ बनाना,
- समाधान प्रक्रिया को तीव्र करने और परिसंपत्तियों के वसूली योग्य मूल्य को अधिकतम करने के लिए IBC प्लेटफॉर्म का डिजिटलीकरण करना आदि।
IBC से जुड़े प्रमुख मुद्दे
- कम वसूली: वर्ष 2017 से 363 से अधिक प्रमुख प्रस्तावों में, बैंकों ने औसतन 80% का हेयरकट किया है। मामलों का दीर्घावधि तक लंबित रहना, विलंबित समाधान प्रक्रिया आदि।
“हेयरकट” एक उधारकर्ता से वास्तविक बकाया राशि और उसके द्वारा बैंक के साथ निपटान की गई राशि के बीच का अंतर होता है।
स्रोत – द हिन्दू