जीन-संपादित सरसों
हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने पहली बार कम तीखी गंध वाली सरसों विकसित की है, जो कीट रोधी होने के साथ रोग प्रतिरोधी भी है।
यह गैर-आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) और ट्रांसजीन – मुक्त होने के साथ-साथ CRISPR/Cas9 जीन एडिटिंग पर आधारित है।
विदित हो कि , भारतीय सरसों के बीज में ग्लूकोसाइनोलेट्स (glucosinolates) का स्तर काफी अधिक होता है, जो सल्फर और नाइट्रोजन युक्त यौगिकों का एक समूह है। यह सरसों तेल और भोजन में गंध को तीखा कर देता है। इस वजह से कई उपभोक्ता ऐसे तेल का सेवन करने से बचते हैं।
वैज्ञानिकों द्वारा विकसित कम ग्लूकोसाइनोलेट वाली सरसों GM या ट्रांसजेनिक पौधों के विपरीत जीनोम एडिटेड या GE हैं। ग्लूकोसाइनोलेट्स का संश्लेषण सरसों के पौधों की पत्तियों और फली की वॉल में होता है। बीजों में उनका स्थानांतरण और ‘संचय ग्लूकोसाइनोलेट ट्रांसपोर्टर (GTR)’ जीन की क्रिया के माध्यम से होता है।
GTR1 और GTR2 के दो अलग-अलग वर्गों के अंतर्गत 12 ऐसे जीन हैं जिनमें से प्रत्येक की छह प्रतियां हैं। शोधकर्ताओं ने अधिक उपज देने वाली भारतीय सरसों की किस्म ‘वरुणा’ में 12 GTR जीन में से 10 को एडिट किया है।
उन्होंने जीन एडिटिंग टूल CRISPR/Cas9 का उपयोग किया जो एंजाइम के माध्यम से जीन के सटीक लक्षित स्थानों पर डीएनए को काटने के लिए “आणविक कैंची” (molecular scissors) के रूप में कार्य करता है।
सरसों की जीन एडिटिंग के लिए स्ट्रेप्टोकोकस पाइोजेन्स बैक्टीरिया (Streptococcus pyogenes bacteria) से प्राप्त Cas9 एंजाइम का उपयोग पहली पीढ़ी के पौधों में लक्षित जीन के डीएनए को काटने के लिए किया गया था, यह प्रोटीन बाद की पीढ़ियों में अलग हो जाता है।
इस तरह बाद में सरसो में कोई Cas9 प्रोटीन नहीं होता है और ये ट्रांसजीन – मुक्त होते हैं। यह शोध भारत में घरेलू तिलहन उत्पादन को बढ़ाने की क्षमता रखता है, जिससे आयातित वनस्पति तेलों पर देश की निर्भरता कम हो जाएगी।
CRISPR तकनीक:
- यह एक जीन एडिटिंग तकनीक है, जो Cas9 नामक एक विशेष प्रोटीन का उपयोग करके वायरस के हमलों से लड़ने के लिये बैक्टीरिया में प्राकृतिक रक्षा तंत्र की प्रतिकृति का निर्माण करती है।
- यह आमतौर पर जेनेटिक इंजीनियरिंग के रूप में वर्णित प्रक्रिया के माध्यम से आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।
- CRISPR तकनीक में बाहर से किसी नए जीन को जोड़ना शामिल नहीं है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC)
- गौरतलब है कि GM फसलों को वर्तमान में भारत में न केवल व्यावसायिक खेती के लिए बल्कि फील्ड ट्रायल और बीज उत्पादन के लिए भी सख्त “पर्यावरण रिलीज” नियमों का पालन करना होता है।
- ऐसी रिलीज़ के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक विशेष जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee: GEAC) से मंजूरी लेनी पड़ती है।
- GEAC की सिफारिश को मानना केंद्र सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है। इस तरह अंतिम मंजूरी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के हाथ में है।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस