जिलेवार अल्पसंख्यकों की पहचान का मामला
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जिला स्तर पर अल्पसंख्यकों को मान्यता देने संबंधी याचिका कानून के अनुरूप नहीं है।
उच्चतम न्यायालय ने जिलेवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिए दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह इस तरह की मांग पर विचार नहीं कर सकता।
न्यायालय के मुताबिक यह मांग उन पिछली मांगों के विपरीत है, जिनके अनुसार इस तरह की पहचान राज्य स्तर पर की जानी चाहिए।
केरल शिक्षा विधेयक मामले (1958) में, उच्चतम न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया था कि अल्पसंख्यकों की पहचान ब्लॉक या जिला स्तर पर की जानी चाहिए।
इसके अलावा, टी.एम.ए. पाई मामले (2002) में, उच्चतम न्यायालय ने माना था कि भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक निर्धारण राज्य को इकाई मानकर किया जाता है, न कि पूरे देश की जनसंख्या को ध्यान में रखकर।
भारत में अल्पसंख्यक का दर्जा
- संविधान अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित नहीं करता है। यह केवल अल्पसंख्यकों के लिए प्रावधान करता है। अल्पसंख्यकों के अधिकारों को संविधान के अनुच्छेद-29 और 30 के तहत वर्णित किया गया है।
- साथ ही, अनुच्छेद 350B में भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है।
- हालांकि, केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) अधिनियम, 1992 का उपयोग करते हुए मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी को ‘अल्पसंख्यक’ घोषित किया है।
- अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की रक्षा के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCMEI) अधिनियम, 2004 लागू किया गया है।
स्रोत –द हिन्दू