प्रश्न – जाति व्यवस्था तथा अनुसूचित जातियों के सम्बन्ध में महात्मा गाँधी और बी.आर.अम्बेडकर के दृष्टिकोण का तुलनात्मक विश्लेषण कीजिये। – 12 July 2021
Answer – जाति व्यवस्था | अनुसूचित जातियों
व्यवहारिक स्तर पर भीमराव अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म के भीतर सवर्ण हिन्दुओं और निम्न जातियों के बीच समानता का आन्दोलन चलाया तथा इसके लिए सम्मिलित प्रतिभोज तथा पूजा पर्व का सहारा लिया इनका गाँधी से दलितों के उद्धार के संदर्भ में विचार अलग है।
महात्मा गाँधी और बी.आर.अम्बेडकर के दृष्टिकोण में अंतर:
- जहाँ गाँधी जी यह मानते थे कि सवर्णों के हृदय परिवर्तन से छुआ-छूत मिटाया जा सकता है, अर्थात् महात्मा गाँधी जाति प्रथा समाप्त करने के समर्थक थे, जबकि वर्ण व्यवस्था से उनका कोई विरोध नहीं था। वहीँ अम्बेडकर का मानना था कि अस्पृश्यता की जड़ें वर्ण व्यवस्था में निहित हैं, अतः अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए वर्ण व्यवस्था का अंत जरूरी है, क्योंकि वर्ण व्यवस्था में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। उसे समूल नष्ट कर देना ही उपयुक्त है। अतः दलितों का उद्धार तभी होगा जब अधिकारों की रक्षा, शिकायत निवारण व्यवस्था तथा राजनीतिक सत्ता भी उनके हाथों में आ जाए।
- महात्मा गाँधी ने जाति व्यवस्था को हिंदू धर्मं की एक विकृति माना और अनुसूचित जातियों के कष्टों के लिए हिंदू धर्मं को दोष नहीं दिया। जबकि बी. आर. अम्बेडकर ने जाति व्यवस्था के लिए हिंदू धर्मं को त्याग कर अपने अनुयाइयों के साथ बौद्ध धर्म में शामिल हो गए थे।
- महात्मा गाँधी नेअनुसूचित जातियों के लिए ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किया। जबकि अम्बेडकरने अनुसूचित जातियों के लिए ‘दलित’ शब्द का प्रयोग किया।
- महात्मा गाँधी ने अनुसूचित जातियों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान पर ध्यान
केन्द्रित किया। जबकि अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियोंके न सिर्फ सामाजिक और आर्थिक उत्थानपर ध्यान दिया, अपितु उनके राजनीतिक अधिकारों पर भी बल दिया।
निष्कर्ष:
जाति व्यवस्था तथा अनुसूचित जातियों के सम्बन्ध में महात्मा गाँधी और बी.आर.अम्बेडकर के दृष्टिकोण में अंतर के बावजूद दोनों ने समाज सुधार की दिशा में अभूतपूर्व कार्य किए।