हाल ही में जाति आधारित जनगणना (Caste-based Census) की मांग की जा रही है । जनगणना जातिगत पहचान के आधार पर लोगों या परिवारों की गणना है। इससे समाज के विभिन्न वर्गों की वास्तविक स्थिति और समाज में उनकी हिस्सेदारी की पहचान करने में सहायता प्राप्त होती है।
पृष्ठभूमि
- प्रथम बार जाति आधारित जनगणना अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1881 की जनगणना से आरंभ की गई थी। वर्ष 1931 की जनगणना, जाति के आधार पर जनसंख्या के आंकड़ों के साथ भारत की अंतिम प्रकाशित जातिगत जनगणना है।
- वर्ष 1951 से, जाति के आधार पर सामुदायिक विभेद को हतोत्साहित करने की नीति के भाग के रूप में, इसे रोक दिया गया था। जाति या जनजाति आधारित प्रश्न केवल ‘अनुसूचित जाति’ व ‘अनुसूचित जनजाति’ (1961 से आगे) तक ही सीमित थे।
- वर्ष 2011 में, भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RG) तथा भारत के जनगणना आयुक्त के पर्यवेक्षण में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत जाति आधारित जनगणना के साथ आयोजित की गई थी।
जाति आधारित जनगणना की मांग क्यों?
- भारत की जनसंख्या में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की वास्तविक जनसांख्यिकीय संरचना की पहचान करना।
- बेहतर पुनर्वितरण के लिए राष्ट्रीय परिसंपत्ति पर प्रत्येक समूह की हिस्सेदारी की पहचान करना।
- लक्षित कल्याणकारी हस्तक्षेप या सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों आदि को आरक्षण नीति से जोड़ना।
मुद्देः राष्ट्रीय एकता और विभिन्न जातियों के मध्य सद्भाव पर प्रतिकूल प्रभाव; प्रक्रियात्मक मुद्दे; जातियों का गलत वर्गीकरण आदि।
स्रोत –द हिन्दू