जल्लीकट्टू खेल को जारी रखने की अनुमति प्रदान
- हाल ही में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ पशु क्रूरता निवारण (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम, 2017 और इसके नियमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
- यह कानून जल्लीकट्टू खेल को जारी रखने की अनुमति प्रदान करता है।
- उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2014 में जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- इस खेल के समर्थकों का दावा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत सांस्कृतिक अधिकारों का हिस्सा है।
- जल्लीकट्टू का आयोजन पोंगल त्योहार के अवसर पर किया जाता है। इस खेल में बैलों को वश में करने का प्रयास किया जाता है।
- जल्लीकट्टू में श्रेष्ठ देसी नस्लों के बैल / सांड किसानों के बल और चालाकी की परीक्षा लेते हैं। हालांकि, इसे एक हिंसक खेल माना जाता है।
जल्लीकट्टू के संबंध में स्थिति
- जल्लीकट्टू के संदर्भ में एक द्वंद्व यह बना हुआ है कि क्या इस परंपरा को तमिलनाडु के लोगों के सांस्कृतिक अधिकार के रूप में संरक्षित किया जा सकता है, जो कि एक मौलिक अधिकार है।
- गौरतलब है कि अनुच्छेद 29(1) के अनुसार, भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, को उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
- हालाँकि इस विशेष मामले में अनुच्छेद 29(1) पशुओं के अधिकारों के खिलाफ प्रतीत होता है।
जल्लीकट्टू पर कानूनी हस्तक्षेप:
- वर्ष 2011 में केंद्र सरकार द्वारा बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल किया गया जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी प्रतिबंधित है।
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2011 की अधिसूचना का हवाला देते हुए एक याचिका दायर की गई थी जिस पर फैसला सुनाते सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया।
जल्लीकट्टू पर वर्तमान कानूनी स्थिति:
- राज्य सरकार ने इन कार्यक्रमों को वैध कर दिया है, जिसे अदालत में चुनौती दी गई है।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया, जहाँ यह मामला अभी लंबित है।
स्रोत – द हिन्दू