जलीकट्टू
तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में अभी पार्टियों ने यहाँ के सांस्कृतिक त्यौहार जैसे पोंगल और जल्लीकट्टू पर रूचि दिखाना शरू कर दिया है।
जलीकट्टू परंपरा:
- जल्लीकट्टू एक बैल को वश में करने का खेल है जो तमिलनाडु में लोकप्रिय है। यह विशेष रूप से मदुरई, त्रिची, थेनी, पुदुक्कोट्टई और डिंडीगुल में लोकप्रिय है, जिसे जल्लीकट्टू बेल्ट कहा जाता है।
- यह फसल त्योहार पोंगल के दौरान मनाया जाता है। यह 2,000 साल पुरानी परंपरा है और इसे शुद्ध नस्ल के देशी बैल के संरक्षण के लिए एक तरीका माना जाता है।
- यह एक प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में आयोजित किया जाता है- यदि प्रतियोगी सफलतापूर्वक बैल को वश में करता है तो वह पुरस्कार जीतता है और अगर वह विफल रहता है, बैल का मालिक पुरस्कार जीतता है।
- हालांकि इसने अपने हिंसक स्वभाव के लिए पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के विरोध को भी आकर्षित किया है।
जलीकट्टू का महत्त्व:
- जल्लीकट्टू को किसान समुदाय के लिये अपनी शुद्ध नस्ल के सांडों को संरक्षित करने का एक पारंपरिक तरीका माना जाता है।
- वर्तमान समय में जब पशु प्रजनन अक्सर एक कृत्रिम प्रक्रिया के माध्यम से होता है, ऐसे में संरक्षणवादियों और किसानों का तर्क है कि जल्लीकट्टू इन नर पशुओं की रक्षा करने का एक तरीका है, अन्यथा जुताई में इनकी उपयोगिता घटने के साथ इनका उपयोग केवल मांस के लिये ही किया जाता है।
- जल्लीकट्टू के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले लोकप्रिय देशी मवेशी नस्लों में कंगायम, पुलिकुलम, उमबलाचेरी, बारगुर और मलाई मडु आदि शामिल हैं।
- स्थानीय स्तर पर इन उन्नत नस्लों के मवेशियों को पालना सम्मान की बात मानी जाती है।
जल्लीकट्टू पर कानूनी हस्तक्षेप:
- वर्ष 2011 में केंद्र सरकार द्वारा बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल किया गया जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी प्रतिबंधित है।
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2011 की अधिसूचना का हवाला देते हुए एक याचिका दायर की गई थी जिस पर फैसला सुनाते सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया।
- राज्य सरकार ने इन कार्यक्रमों को वैध कर दिया है, जिसे अदालत में चुनौती दी गई है।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया, जहाँ यह मामला अभी लंबित है।
क्यों है यह इतना जटिल मामला ?
- जल्लीकट्टू परंपरा को तमिलनाडु के लोगों के सांस्कृतिक अधिकार के रूप में संरक्षित किया जा सकता है, जो कि एक मौलिक अधिकार है,क्योंकि अनुच्छेद 29(1) के अनुसार,भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, को उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
- हालाँकि इस विशेष मामले में अनुच्छेद 29(1) पशुओं के अधिकारों के खिलाफ प्रतीत होता है।
अन्य राज्यों में ऐसे खेलों की स्थिति:
कर्नाटक द्वारा भी कंबाला नामक एक ऐसे ही खेल को बचाने के लिये एक कानून पारित किया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस